एक बार मेरे घर पर,
मेरे हाथ का बना तीन कोर्स का खाना खाकर डकार मारते हुए एक परिचित ने कहा, ‘वैसे आप खाना-वाना बनाने
टाइप लगती नहीं हैं।’
‘क्या मतलब?’ उनसे ज्यादा बेतकल्लुफ नहीं थी सो थोड़ा अटपटा
लगा।
‘पढ़ी-लिखी, मॉडर्न हैं आप, मीडिया जैसी
इंडस्ट्री से हैं, विदेश-उदेश भी रह आई हैं ऐसी फ्री थिंकिंग लड़कियां आजकल कहां
किचन-विचन का काम करती हैं।’ उन्होंने अपना बेतकल्लुफ अंदाज़ जारी रखा।
जी में आया महाशय के
हलक में हाथ डालकर खाना बाहर निकाल लूं। लेकिन मेहमाननवाज़ी का तकाज़ा था सो चुप
रही।
मुझे खाना बनाने का
शौक है, यूं कहें कि कुकिंग मेरा स्ट्रेस बर्सटर है। काम से थककर जब घर पहुंचो तो
किचन में होना मुझे सुकून देता है। अपने परिवार को खुद का बनाया खाना खिलाना मेरे
लिए प्यार और अपनापन दिखाने का सबसे सहज तरीका है। दोस्तों के साथ समय बिताने का
सबसे अच्छा तरीका भी मुझे यही लगता है कि उन्हें घर पर बुलाया जाए और उनके लिए
खाना बनाया जाए। फिर आराम से बेतकल्लुफ बातें करें उनसे। और इसी शौक ने वीमेंस लिब
के प्रबल समर्थकों के दोमुंहेपन से रूबरू भी कराया है कई बार।
मेरी कई ‘प्रोफेशनली क्वालीफाईड बट
नॉट वर्किंग’ सहेलियों को भी कुकिंग बेहद ‘हाउसवाईफिश’ काम लगता है और उन्होंने मुझे रोज़-रोज़ के इस काम से बाहर
निकालने की कोशिश भी की है।
‘क्यों भाई? मेरे शौक हैं, मेरी मर्ज़ी है।‘
‘तुम समझती नहीं, यही तो ये मर्द और उसके घरवाले
चाहते हैं, कि हम किचन से बाहर ना निकलें।‘
‘लेकिन मैं पूरा दिन नहीं बिताती, बाहर भी निकल
लेती हूं और यहां वापस आना सकून देता है मुझे। फिर किसी ने फोर्स थोड़े ही ना किया
है मुझे, मेरी च्वाईस है ये।‘
‘जब च्वाईस ही ऐसी है तो फोर्स करने की ज़रूरत
क्या है किसी को’
‘लेकिन घर के जिन कामों में मेरा मन नहीं लगता
है, उन्हें नहीं करती ना।‘ ये मेरी आखिरी कोशिश होती
है अपने शौक को पिछड़ेपन के लेबल से बचाने की।
कई नज़रें मेरी ओर
दयनीय भाव से उठती हैं और मैं बात बदल देना चाहती हूं।
वैसे अब ये बकवास
बर्दाश्त नहीं करती मैं, पहली पंक्ति में ही ऑफेंसिव होकर सामने वाले को डिफेंस
में ले आने की कला बखूबी आ गई है। फिर भी मेरा चिर विद्रोही मन अशांत रहता है इन
मानसिकता पर।
हम क्या इसी दोहरेपन
और दोगलेपन की आज़ादी को वीमेंस लिब कहते हैं? जो सो कॉल्ड काम हमारे हिस्से के माने जाते हैं
अगर उन्हें हम शौक से भी करना चाहें तो पिछड़े हुए हैं? औरत की हॉबी पेंटिंग हो तो
ठीक, यहां तक कि शॉपिंग या ड्राईविंग भी हो तो भी ठीक, खाना बनाना इज़ जस्ट सो नॉट
हैपनिंग, सो नॉट विमेंस लिब टाईप।
यूं तो दुनिया में
हर सिचुएशन के लिए हर किसी की परिभाषा अलग है और हर कोई अपने नज़रिए से दूसरों को
लेकर जजमेंटल होना चाहता है, लेकिन मेरी मौजूदा समस्या थोड़ी सूक्ष्म और निजी
किस्म की है। उदारवादी सोच का कोई भी ऐसा है क्या जो खाना बनाने की आज़ादी की मेरी
चाह पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगाए? पता नहीं कहां जाऊं। वीमेन्स लिब की झंडाबरदार दीपिका
पडुकोण ने माई च्वाईस के तहत जिन विकल्पों को रखा है उसमें कपड़े पहनने, प्यार
करने और सोने के साथ कुकिंग भी शामिल कर लेतीं तो मेरी जैसी पिछड़ों का कुछ भला हो
जाता।
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