Sunday, October 23, 2016

बेटियों के मां-बाप भी बूढ़े होते हैं



कुछ बातें निजी स्तर पर इतने गहरे जुड़ी होती हैं कि उनके बारे में कुछ भी कहना कई पुराने ज़ख्मों को कुरेद देता है। मेरी परवरिश में दादाजी का बहुत बड़ा हाथ था, कई मायनों में वो समय से बहुत आगे थे। शादी के बाद उन्होंने मां की पढ़ाई पूरी करवाई, हम चारों बहनों की पढ़ाई से जुड़ी हर छोटी चीज़ को लेकर हमेशा सजग रहे। टीवी पर मेरी एक रिपोर्ट को उतनी बार टकटकी लगाए देखते जितनी बार वो दोहराई जातीं। मेरी नौकरी के दौरान एक बार जब वो हमारे घर आए थे, उन्हीं दिनों नानाजी ने भी हमारे यहां आने का प्रोग्राम बनाया। दादाजी को जब ये खबर मिली तो उन्होने थोड़ी तल्खी से कहा, मैं अपने घर में हूं, बाकी मेहमानों का स्वागत है। जवाब में मां ने हंसकर बस इतना कहा मेहमान क्यों, ये उनकी बेटी का भी तो घर है। दादाजी तुरंत नाराज़ हो गए।

Friday, October 21, 2016

ये मुद्दा बेमानी हैं


अमेरिका में चुनाव होने वाले हैं।  होने वाले तो यूपी और पंजाब में भी हैं लेकिन अमेरिका वाला एक तो दिवाली-छठ निपटाते ही पड़ेगा और दूसरा उसमें वो सारे टाइम पास मसाले हैं जिसे हम अपने वाले चुनावों में ढूंढकर मज़ा लेते हैं। जिस तेज़ी से अमेरिका के कोने-कोने से बालाएं सामने आकर डोनाल्ड ट्रंप पर यौन शोषण के आरोप मढ़ रही हैं, ज़्यादातर लोगों के लिए व्हाइट हाउस की दौड़ हिलेरी के पक्ष में खत्म हो चुकी है और उनकी दिलचस्पी केवल विनिंग मार्जिन जानने में बची है।
हिलेरी चुनाव जीत गईं तो खबर क्या बनेगी? औरतों की इज्ज़त नहीं करने वाले ट्रंप को हराकर हिलेरी ने इतिहास रचा, और बन गईं अमेरिका की पहली महिला राष्ट्रपति?

Sunday, October 16, 2016

अवसाद की एक शाम






एक लेख भेजने की डेडलाइन पार हो चुकी है और मेरी उंगलियां ढीठ बनी कीबोर्ड पर एक ही जगह अड़ी हुई हैं। मैं स्क्रीन पर नज़र जमाए शून्य में निहार रही हूं। इसके एक बटन पर क्लिक करते ही मुझे दुनिया संतरे की तरह कई फांकों में बंटी दिखेगी। मेरे सामने किसी एक के सहारे लग जाने की चुनौती है, निरपेक्ष नहीं रहा जा सकता क्योंकि वो आउट ऑफ फैशन है आजकल। हर टुकड़े के सही ग़लत दोनों पक्षों पर विचार रखने वालों की गत तो धोबी के कुत्ते समान। राष्ट्रकवि आज होते तो शायद उन्माद के बीच तटस्थता की ज़रूरत पर ही लिख डालते।