Saturday, January 30, 2016

भूख


शहर बड़ा ही दबंग था और ये दबंगई वहां के भिखारियों में भी झलकती थी। मैं उन भिखारियों की बात कर रही हूं जो परिचित से बन गए थे, हफ्ते दस दिन में चले आते अपने बंधे-बंधाए घरों में। हफ्तावसूली के अंदाज़ में, पूरे अधिकार से गेट खोलकर बरामदे तक पहुंच जाते। जिस दिन देर हुई उस दिन समय खराब करने का उलाहना भी दे देते, देने में उनकी उम्मीद पर खरे नहीं उतरे तो उसका भी इतने उच्च स्वर में उद्घोष होता जिसे आस-पास के चार घर सुन लें।
शायद इसलिए उसका आना अलग से याद है अभी तक। उसके मुंह से निकली आवाज़ हम तक पहुंचने से पहले ही कहीं टूट जा रही थी, गेट पर खड़ा बस इशारे से खाना मांग रहा था।

Tuesday, January 26, 2016

सास-कथा


शादी करके नैना जब ससुराल आई तो उसका हाथ अपने हाथों में लेकर पति ने उससे ये बात कही, ये घर तुम्हारा है, इसे अपने हिसाब से चलाना, बस एक बात का ध्यान रखना कि मेरी मां को किसी बात का दुख नहीं पहुंचे। उसकी ज़रूरतें वैसे भी कम हैं, कभी कुछ नहीं मांगेगी वो हमसे, लेकिन हर काम से पहले उसकी राय ज़रूर लेना, बहुत दुख उठाए हैं उसने, लेकिन अपने बच्चों की खातिर चुप रही हमेशा, मां की बात करते-करते पति की आंखे भर आईं लेकिन उसने बोलना जारी रखा, बहुत से लोग हैं इस दुनिया में जिनसे नफरत करता हूं मैं क्योंकि उन्होंने मेरी मां को कष्ट दिए, मेरा पूरा बचपन अपनी मां को छोटी-छोटी खुशियों के लिए तरसते और दूसरों की ग़लतियों की डांट सुनते देखते बीता है। अपने पिता से भी शिकायत है मुझे क्योंकि अपने परिवार की वजह से उन्होंने कभी मेरी मां के हक की आवाज़ नहीं उठाई। तभी से मैंने सोच लिया था कि बड़ा होकर अपनी मां का हमेशा ख्याल रखूंगा, कभी उसके चेहरे की मुस्कुराहट कम नहीं होने दूंगा। इसलिए आज से तुम्हारी हर ख्वाहिश सर आंखों पर बस मां को शिकायत का मौका मत देना।

Saturday, January 23, 2016

संभावनाओं का देश


आपकी रेफरेंस लिस्ट बहुत छोटी है मैडम, बेरसराय की उस दुकान में जब अपनी पीएचडी की थीसिस प्रिंट कराने गई तो कम्प्यूटर ऑपरेटर ने छूटते ही कहा।
जानती हूं, जिस विषय पर मैंने काम किया है उसपर कम ही किताबें आई हैं,’  मैंने उसे अभ्यस्त सा जवाब दिया।
अरे मुश्किल होगा आपको मैडम, लंबा करो ना इसे, वैसे भी पढ़कर कौन मिलानेवाला है इसको, यहां जो भी आता है अंदर चाहे जो भर हो कम से कम 10-12 पन्ने की रेफरेंस लिस्ट ज़रूर होती है, उसने देश में सबसे आसानी से मिलने वाली चीज़, मुफ्त की सलाह दी।
लेकिन जो किताबें या पेपर मैंने पढ़ीं हीं नहीं उन्हें कैसे जोड़ दूं’?

Sunday, January 17, 2016

शुक्रिया ज़िंदगी


17 जनवरी को आखिरी चेकअप था।
अभी घर जाकर आराम करो, कल सुबह करेंगे ऑपरेशन, डॉक्टर सॉर्किन वेल्स ने एक और मीठी हिदायत दी।
सर्जरी के लिए अच्छे से तैयार होकर आना, हो सके तो मेकअप भी। इसके बाद हफ्तों तक शायद तुम्हें कंघी करना भी याद नहीं रहने वाला है’, निकलते-निकलते ये सलाह नर्स लिज़ की थी। 
हम पूरी तैयारी से समय पर पहुंचे थे, रात वैसे भी ऑंखों में ही कटी थी।

Wednesday, January 13, 2016

अल्पविराम का प्रतीक्षालय


लाउन्ज में मंहगी वाली रिक्लाइनर कुर्सियां लगी हुई हैं, उस ओर दीवार की जगह छत से फर्श तक शीशे ही हैं, जिनके पार बागीचा, सड़क और सड़क के उस पार की ऊंची इमारतें दिख रही हैं। धुंध भरे आसमान के बीच कभी-कभार झांक लिया करता चांद भी है, सड़क की नियोन लाइटें भीं और सरपट दौड़ती गाड़ियों की हेडलाइट भी। अंदर कमरे की मद्धिम बत्तियों के बीच बाहर की रोशनी भली मालूम होती है। इस फाइव स्टार अस्पताल में ये कमरा आईसीयू के मरीज़ों के परिवारजनों के लिए है।

Saturday, January 9, 2016

प्राइवेट यूनिवर्सिटी का प्रोफेसर है तो क्या हुआ...


लोकतंत्र के चौथे खंभे की ईंटें गढ़ने के कारखाने गली-गली में खुल गए हैं, इन ईंटों को गढ़ने के कारीगर भी दिहाड़ी मज़दूरों की तरह मिलते हैं, पनियल से, कोर्स भी वैसे ही लचर, बीच-बीच में एक सेलिब्रिटी कारीगर को बुला भेजा जाता है, सुनहरे भविष्य के सपने दिखाने, बेस्वाद कोर्स पर घी का तड़का लगाने। यूं आजकल ऐसे कारखानों का बड़ा नाम है जहां तपाई गई ईंटे उन्हीं की दीवारों पर चुन देने के वायदों के भरोसे आती हैं। बिल्कुल हींग लगे ना फिटकरी, रंग चोखा की तर्ज़ पर। 40-45% नंबर वाले मेधावी भी यहां मैं माधुरी दीक्षित बनना चाहती हूं वाले अंदाज़ में पहुंचने का हौसला रख सकते हैं।

Saturday, January 2, 2016

समय के पंखों के पीछे-पीछे




यूं अभी कुछ हफ्ते बाक़ी हैं, लेकिन हलचल काफी पहले शुरु हो गई है। घर के किसी कोने में जब दोनों सिर जोड़ कर गुपचुप कर रहे हों, समझो योजनाएं बन रहीं हैं। दोस्तों के नाम कई बार जोड़े और काटे जा चुके हैं, मेन्यू, रिटर्न गिफ्ट जैसे काम मां के जिम्मे हैं, लेकिन नए सुझावों की फेहरिस्त रोज़ सामने रखी जा रही है। साल शुरू होते ही बच्चों का जन्मदिन दस्तक देने लगता है, और ये साल तो यूं भी खास है, ये उनका पहला डबल डिजिट बर्थ डे है। दस साल..क्या बस इतने से होते हैं?