Sunday, July 30, 2017

बोलना ज़रूरी है


हमारे स्कूल में क्लासमेट्स को भी भैया और दीदी कहकर पुकारने का रिवाज़ था. पीछे की सोच शायद ये कि संबोधन की यह बाध्यता बोर्डिंग स्कूल के कैंपस में ऐसी-वैसी घटनाएं होने से रोक ले. पूरे कानून को लागू करने का गुरुभार प्राथमिकता से संभालने वाले गुरुजी किसी भी बात पर खुश होकर बड़ी ज़ोर की शाबासी दिया करते. पीठ थपथपाते-थपथपाते सहलाकर ये जांच भी कर लिया करते कि किस लड़की ने ब्रा पहनना शुरु कर दिया है. कभी मौका देखकर स्ट्रैप हल्के से खींचकर छोड़ भी दिया करते.

ऐसा करते उन्हें कई बार स्कूल की महिला टीचर ने देखा. गर्ल्स हॉस्टल की वार्डन होने के नाते उन्होंने बड़ी हो चुकी लड़कियों के अपने पास बुलाया और इससे बचने के तरीके बताए. जैसे बात करते वक्त गुरुजी के बगल के बजाए सामने खड़ा रहा जाए या उनके पास अकेले नहीं ग्रुप में जाया जाए. 

ध्यान रहे, उन्होंने बचाव के तरीके बताए, प्रतिकार के नहीं.

Saturday, July 29, 2017

बेटी की कमाई




पता नहीं कौन-कौन से धर्म ग्रंथ में लिखा है, कौन से धर्म गुरु कह गए, लेकिन सामाजिक मान्यताओं की सूची में जिन बातों का ज़िक्र भी कुफ्र माना जाता है, बेटी की कमाई उनमें से एक है. पीढ़ियों की कंडीशनिंग ने बेटियों के मां-बाप के लिए अपराधबोध की जो फेहरिस्त बनाई है, उन्हें जिन बातों पर शर्मिंदा होना सिखाया है, बेटी का कमाया धन उसमें काफी ऊपर दर्ज है.
किसी होनहार लड़की के स्वाभिमानी माता-पिता को सरेआम अपदस्थ करना हो तो उनसे उनकी बेटी की कमाई के इस्तेमाल के बारे में पूछ लीजिए. इस देश में लोग अपनी दो नंबर की कमाई का प्रदर्शन भले ही छाती ठोंक कर कर लें, लेकिन बेटी से मिले एक छोटे से तोहफे का ज़िक्र उन्हें तमाम तरह की कैफियतें ढूंढने पर मजबूर कर देता है.
बेटे की कमाई को मेडल बनाकर दुनिया भर में उसका प्रदर्शन करने वालों ने बेटियों की कमाई को पाप का ऐसा जामा पहना दिया है कि बेचारे बेटियों के मां-बाप सिर उठाकर उसके बारे में कुछ बोलने की कभी हिम्मत ही नहीं कर पाते.
हमारे बेटे ने कार ख़रीदकर दिया है, कस्बे की कीचड़ भरी सड़कों पर दनदना कर चलाएंगे, लोगों को पता तो चले कि हमारा इन्वेस्टमेंट अब कैसे रिटर्न्स देने लगा है.
अब तो बेटा कमा रहा है हमारा जी, हम तो काम छोड़ने के मूड में हैं, पजामे को घुटनों तक चढ़ाकर आराम से पीठ खुजाएंगे और दूसरों की बेटियों में नुख्स निकालेंगे.

Sunday, July 16, 2017

प्रसव के बाद की पीड़ा (पोस्टपार्टम डिप्रेशन)



पीरिएड्स, स्त्रीत्व से जुड़ा इकलौता ऐसा चक्र नहीं है जिसके बारे में हो रही फुसफुसाहट भी उंगली के इशारे भर से वर्जित कर दी जाती है. एक निषेध और है जिसके बारे में फुसफुसाना तो दूर सोचना भी कुफ्र है.

औरतों के जीवन में वैसा समय भी आता है जब उन्हें पीरिएड्स के मासिक चक्र से छुट्टी मिल जाती है. वो वक्त जब वो शरीर और मन दोनों में परिवर्तन के सबसे बड़े चक्र से गुज़र रही होती हैं. लेकिन ये तो खुश होने की बात है, आखिरकार इतने सालों से चले आ रहे पीड़ा चक्रों से इसी परिणति की उम्मीद में ही तो गुज़रा जा रहा था. ये तो जश्न की बात है, गर्भ और उसके बाद प्रसव की पीड़ा में छुपाने जैसा वैसे भी कुछ नहीं होता.