हमारे स्कूल में क्लासमेट्स को भी भैया और दीदी
कहकर पुकारने का रिवाज़ था. पीछे की सोच शायद ये कि संबोधन की यह बाध्यता बोर्डिंग
स्कूल के कैंपस में ऐसी-वैसी घटनाएं होने से रोक ले. पूरे कानून को लागू करने का
गुरुभार प्राथमिकता से संभालने वाले गुरुजी किसी भी बात पर खुश होकर बड़ी ज़ोर की
शाबासी दिया करते. पीठ थपथपाते-थपथपाते सहलाकर ये जांच भी कर लिया करते कि किस
लड़की ने ब्रा पहनना शुरु कर दिया है. कभी मौका देखकर स्ट्रैप हल्के से खींचकर
छोड़ भी दिया करते.
ऐसा करते उन्हें कई बार स्कूल की महिला टीचर ने
देखा. गर्ल्स हॉस्टल की वार्डन होने के नाते उन्होंने बड़ी हो चुकी लड़कियों के
अपने पास बुलाया और इससे बचने के तरीके बताए. जैसे बात करते वक्त गुरुजी के बगल के
बजाए सामने खड़ा रहा जाए या उनके पास अकेले नहीं ग्रुप में जाया जाए.
ध्यान रहे, उन्होंने बचाव के तरीके बताए,
प्रतिकार के नहीं.