‘बाय,
सी यू, मिस यू’, के नारों के साथ जाने वालों की आखिरी गाड़ी भी
विदा हो गई तो कई मिनट तक दोनों बरामदे के दो कोनों में एक-दूसरे से आखें चुराते
बैठे रहे।
दो हफ्तों से
आशियाने को गुलज़ार किए सभी पाखी अपने-अपने घोंसलों को उड़ चले और पीछे छोड़ गए ये
असहज सन्नाटा। बच्चे थे तो उनके बच्चे भी थे, बातें थीं, कहकहे थे, शिकायतें थीं, उलाहने थे, माफी थी, प्यार था, चिंताएं थीं, आश्वासन थे, महत्वाकांक्षाएं थीं, भरोसा था, सराहने थे, साथ था। चले गए तो इन सबके
साथ मां-बाप के बीच जुड़ीं सारी की सारी डोरें भी साथ ले गए। चालीस सालों का जो
आशियाना जोड़ा था उसकी नींव भी बच्चे और छत भी बच्चे।