Wednesday, May 31, 2017

क्योंकि हमारी शर्म मिस्प्लेस्ड है..



कुछ महीने पहले वो तीसरी बेटी का बाप बना है. पांच साल में तीसरी जगची, लिहाज़ा पत्नी को खून, पानी सब चढ़ाना पड़ा. कई रोज़ अस्पताल में रही. लेकिन तीसरे महीने से मंदिर और बाबाओं को दर्शन फिर से शुरु दिए गए हैं. अगली बार बेटा ही हो इसके लिए ज़रूरी है कि किसी भी वजह से मन्नतों और प्रसादों में कोई कमी ना रह जाए. सो ऐसे बाबाओं को ढूंढा जाना जारी है जिनका आर्शीवाद कभी खाली नहीं जाता.
इस बारे में हमारी कई बार बात होती है. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे तमाम जुमले उसके ऊपर से तेल पर पानी की तरह फिसल जाते हैं.

Saturday, May 27, 2017

ईव टीज़िंग में प्यार नहीं होता मीलॉर्ड



उसका नाम मुझे कभी पता नहीं चला, मेरे मुहल्ले में वो कहां रहता था ये भी नहीं जानती. आबनूसी रंग के बीच  उसकी लाल आंखें डरावनी लगती थीं. सुबह से शाम तक वो कई बार हमारे घर के सामने से होकर आया-जाया करता और पूरे वक्त हमारे घर की ओर मुंह किए लगातार घूरा करता. बरामदे या लॉन में अगर कोई मर्द बैठा नहीं दिखता तो वहीं रुक कर कुछ इशारेबाज़ी भी करता. नहीं पता कि कानून की परिभाषा में इसे ईव टीज़िंग कहते हैं या नहीं, लेकिन उसकी आंखो के भय ने अक्सर घर से बाहर निकलते मेरे कदम रोके हैं. कई बार गेट से बाहर निकलते ही उसे देख लेने पर उल्टे पैर घर के अंदर भी भागकर आई हूं. आज इतने सालों के बाद पहली बार इस बात की चर्चा करने पर अपना वो डर कितना अर्थहीन लग रहा है, लेकिन उस उम्र में इस तरह की कई छोटी-छोटी घटनाओं ने मेरे जैसी बहुत सी जीवट लड़कियों का आत्मविश्वास तोड़ा है, आज भी तोड़ती जा रही हैं.

Sunday, May 14, 2017

इस मदर्स डे...


मॉल, बाजार, दुकानें फिर से सज गई हैं. हर सुबह दरवाज़े पर पड़े अखबारों को उठाते ही अंदर से कई रंग-बिरंगे फ्लायर्स निकलकर, ऊंची आवाज़ में हमें याद दिला रहे हैं कि मदर्स डे आने वाला है और अगर मां से प्यार जताने का ये मौका हम चूके तो मातृभक्ति साबित करने की अगली बारी बावन हफ्तों बाद ही आएगी, और वक्त का क्या भरोसा. तो मां के नाम की सेल में कपड़ों, गहनों, मोबाइल फोन्स से लेकर किचन के बर्तनों तक, सब पर छूट जारी है. अपनी श्रद्धा और हैसियत के हिसाब से उठा लो, ना हो तो मां को कैंडल लाइट डिनर के लिए ही ले जाओ.

Wednesday, May 3, 2017

बस इतना सा..



रेस्टोरेंट मंहगा था, लेकिन गंवई अंदाज़ का. शायद थीम ही वही रही हो उसकी. लकड़ी की भारी भरकम चौखट पर भारी नक्काशी का काम था. सिर झुकाकर अंदर घुसने की कोशिश में उंगलियां कुछ क्षणों के लिए एक-दूसरे से उलझ गईं तो दोनों चौखट के आर-पार एक-एक पैर किए ठिठक कर खड़े हो गए. जगह ढूंढने के बहाने दूसरी ओर देखते हुए भी अमोल जान गया था कि सुमी की उंगलियां इस वक्त सख्ती से अंदर की ओर मुड़ी होंगी और उसकी पलकें झपकना भूल गई होंगी.