Monday, February 27, 2017

फेमिनिज़्म बनाम...टु हेल विद इट



कुमारी ने छोटे शहर के बड़े से घर में आखें खोलीं थीं. परवरिश, संयुक्त परिवार में पाई, जहां लड़के और लड़कियों को पालने में कोई अंतर नहीं किया जाता, खाना-कपड़ा, पढ़ाई-लिखाई का वातावरण दोनों को एक समान मिलता. बाकी लड़के को महंगी पढ़ाई के बाद हर हाल में नौकरी करनी होती थी और लड़कियों को सपनों का राजकुमार होम डिलीवर करने के वादे किए जाते. कुमारी को सपने देखना बेहद पसंद था, चूंकि इतना सारा वक्त सपने देखने में चला जाया करता कि कुछ और करने का समय ही नहीं बचता. कुमारी को पूरा भरोसा था कि जिसने सपने दिए हैं वही उन्हें पूरा करने के रास्ते भी बताएगा. कुमारी की आंखें बड़ी-बड़ी और बातें बड़ी मीठी हुआ करती थीं. बातें करना उसे बेहद पसंद भी था, नख से शिख तक प्रसाधन युक्त होकर, बड़ी अदा से कंधे उचकाकर, आंखें गोल-गोल घुमाकर, वो घंटों अपनी बात सही साबित करने में लगी रह सकती थी.

Sunday, February 19, 2017

कहानी ???



दावे के साथ कह सकता हूं कि लड़कियों की दुर्दशा पर आठ-आठ आंसू बहाने वाले और उन्हें बराबरी का हक दिलाने के लिए गला फाड़कर चिल्लाने वाले मर्द कभी भी किसी गर्ल्स कॉलेज की भीतर अकेले नहीं गए होंगे और अगर गए भी होंगे तो बिना सिर मुंडाए बाहर लौट कर नहीं आए होंगे। पहली बार मेरा जाना हुआ था जब मिताली फीस भरने के आखिरी दिन पैसे और आईकार्ड घर भूल आई थी और पापा ने मुझे सीधे उसकी प्रिंसीपल के ऑफिस पहुंचने का हुक्म सुनाया था। बास्केट बॉल कोर्ट की दीवार पर तीस-चालीस लड़कियां कोरस में टांगे झुलातीं दिख गईं तो नज़रों समेत मेरा पूरे का पूरा सिर 60 डिग्री के कोण पर झुक गया। बड़ी मुश्किल से हकलाते हुए एक से मैंने प्रिंसिपल ऑफिस का रास्ता पूछा तो गेट से दाएं, फिर तीन दरवाज़े पार बाएं, फिर सीधे, दाएं और बाएं का दुरूह रास्ता समझ जिस जगह पर मेरी यात्रा खत्म हुई उसके सामने संड़ांध मारता टायलेट नज़र आया। उल्टे पैर वापस बाहर आया तो सामूहिक ठहाकों ने ऐसा स्वागत किया कि फिर वापस अंदर...

Sunday, February 12, 2017

बियाह किलास



हम जिस दौर में आंखें खोलकर दुनिया पहचानना सीख रहे थे, शादी ब्याह के संदर्भ में लड़की क्या करती है जैसा सवाल पूछने लायक नहीं बना था. वैसे करने को तो लड़के भी कुछ नहीं करते रह सकते थे लेकिन सवाल का गैरज़रूरी होना केवल लड़कियों तक सीमित था. समय के साथ तमाम गैरत-बगैरत की जिज्ञासाओं के साथ ये सवाल भी पूछा जाना शुरू हो गया तब उर्वरक दिमागों ने एक नया शब्द इज़ाद किया, लड़की बियाह किलास में पढ़ती है. अर्थात, जब तक बियाह तय नहीं हो जाता है, कॉलेज में नाम लिखा दिया गया है. बियाह किलास में पास होने के लिए इम्तिहान होना या रिज़ल्ट निकलना कभी ज़रूरी नहीं होता था. जिस दिन लड़के वालों ने तिलक-दहेज फिक्स कर मुंह दिखाई की अंगूठी पहनाई, कन्या का बियाह किलास से कस्टमाइज़्ड फेयरवेल हो गया समझो.