इंजीनियरिंग और
मैनेजमेंट की डिग्रियों, बड़े नाम वाली कंपनी में खुद का केबिन और उसके साथ की
सैलरी और सुविधाओं वाली आत्मविश्वास से लबरेज वो लड़की तीस के पायदान को पार करते
ही आजकल परिवार की चिंताओं का सबब बनी बैठी है। कारण जानने के लिए पहेलियां बूझने
की ज़रूरत भी नहीं। एक ही वजह हो सकती है इस इक्वेशन में, उसके लिए योग्य लड़का
नहीं मिल रहा।
“ऐसे बेहूदा सवाल करते हैं लड़के, कुकिंग का शौक
है क्या आपको? जैसे मैं कोई बीए पास लड़की होऊं”, उसने हंसते हुए बताया।
“सच में, लड़कियां अंतरिक्ष में पहुंच गईं लेकिन,
इन लड़कों का अपनी बीवियों को रसोई में बिठाने की ज़रूरत खिसकने का नाम ही नहीं ले
रही,” बातचीत में किसी ने जोड़ा।
इन पढ़े-लिखे
मूर्खों की कई तरह से मिमिक्री के बाद किसी ने कहा, “अब तो जब भी इसकी सैलरी
बढ़ती है हम परेशान हो जाते हैं, इसके लायक वैसे भी कम लड़के हैं, हर इंक्रीमेंट
के बाद दो-चार और कट जाते हैं लिस्ट से।“
तो असल समस्या यहां
है, जैसे हर तरह से पढ़ी-लिखी पत्नी अगर रसोई ना संभाल पाए तो उसका पत्नी होना
बेकार, वैसे ही हर तरह से सपोर्टिव, प्यार करने वाला, भावनाओं को समझने वाला पति
अगर पत्नी से ज्यादा नहीं कमा पाए तो लानत है उसके मर्द होने पर। पैसा, शोहरत, आत्मविश्वास, आज़ादी सब देने वाली
डिग्री और नौकरी अगर एक लड़की को अपने से बेहतर कमाने वाला पति नहीं दिला पाई तो
किस काम की?
पढ़ी-लिखी ऊंची
डिग्री हासिल कर लड़कियों का मकसद आज भी अपने से ज़्यादा कमाने वाला पति हासिल
करना है? अपनी भावनाओं को समझने और उनकी कद्र करने वाले, अपने समकक्ष समझने वाले पति से
ज्यादा दरकार अपने से ऊंचे ओहदे और वेतन वाला पति?
और वो परिस्थिति भी
ठीक होती अगर पति-पत्नी की सहमति होती इसमें। लेकिन यहां तो सवाल पति-पत्नी की
खुशी या आपसी सहमति का है ही नहीं, सवाल है समाज की स्वीकृति का। जैसे अकेले में
उस लड़की ने कहा, “अपनी ज़रूरतों के लिए मुझे पूरी ज़िंदगी किसी और की कमाई
नहीं चाहिए, डर केवल उसके मेल ईगो का है, इस उम्र में शादी के बाद मैं ये सब नहीं
झेल पाऊंगी। फिर परिवार को भी कम कमाने वाले लड़के से खुशी नहीं मिलेगी।“
पढ़ी-लिखी समझदार
लड़की है, तभी समाज की नब्ज़ को पहचानती है, लड़का समझदार भी होगा तो भी समाज
कोंच-कोंचकर उसके अंदर के मेल ईगो को जगा ही देगा।
इस लिहाज़ से तो
विश्वसुंदरी ऐश्वर्य राय को सलमान खान का दामन कभी नहीं छोड़ना चाहिए था, वो तो
हमेशा से ही ज़्यादा बड़ा सुपरस्टार रहा है, दो-चार बार पब्लिक्ली धौल-धप्पे ही तो
मार लिया करता था, उसमें क्या था, सह लेती। अब क्या ऐसे पति के साथ दुनिया घूमती
फिर रही है जिसे पूरी दुनिया उसी के नाम से जानती है फिर भी कमबख्त हर तस्वीर में
मुस्कुराता दिख जाता है (और खुश ही होगा बंदा क्योंकि एक्टिंग तो उसे वैसे ही नहीं
आती)। और ये भी फ्लॉप फिल्मों के बादशाह के साथ ऐसे खुश नज़र आती है जैसे तीन जहान
के बादशाह की बीवी हो (वैसे इतिहास यही बताता रहा है कि बादशाहों की बीवियां कभी
खुश नहीं रहीं)।
यहां द्रौपदी याद
आती है, इसलिए नहीं कि वो पांच पतियों की पत्नी बनी बल्कि इसलिए कि पुरुष प्रधान
उस समाज में वो विद्वता, शौर्य, साहस और सौंदर्य के साथ सर्वगुण सम्पन्न थी,
राष्ट्र के सबसे तेजस्वी वीर की सहभागी होने के काबिल। उस द्रौपदी ने सबसे पहले मन
से सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर और सखा कृष्ण के प्रिय अर्जुन को ही वरा था। इन्द्रप्रस्थ
की महारानी बनने का सौभाग्य लेकिन उसे युद्धिष्ठिर की पत्नी होने के कारण प्राप्त
हुआ। पहला वीर पांच भाइयों के साथ उसे बांटने की कुंठा में, उसे छोड़ जंगल-जंगल
भटका और कई विवाह रचाए तो दूसरा, सम्राट बनने के बाद उसे वस्तु समझ दांव पर लगा
गया।
वही द्रौपदी जब अज्ञातवास
के दौरान कीचक की कामुक दृष्टि से प्रताड़ित, अपनी शिकायत लेकर पतियों का पास पहुंची
तो खून भीम का ही उबला, रक्षा भी उसी ने की। प्रतिभा राय ने ज्ञानपीठ से सम्मानित
अपनी किताब ‘द्रौपदी’ (मूल कृति उड़िया में ‘याज्ञसेनी’ से नाम से है) में कुछ ऐसा ही सवाल उठाया है, पत्नी को फिर
कैसा पति चाहिए अपने लिए, धर्मपुत्र, धनुर्धर या फिर पत्नी के प्रेम, सम्मान और
रक्षा के लिए सजग भीम?
विडम्बना ये है कि समाज
और परिवार की तुष्टि आज भी ‘युधिष्ठिर’ या ‘अर्जुन’ से ही होगी, भले ही बेटियां ‘भीम’ के साथ ज़्यादा सुखी रहें।
कैसा विरोधाभास है ना, लड़कियों का घर से बाहर निकलना जिस पुरुष-प्रधान सोच को
चुनौती देने की शुरुआत होनी चाहिए थी वो आज सारी दुनिया घूम उसी की चौखट पर घुटने
टेके खड़ी है। इसलिए क्योंकि हर चौराहे पर धड़ल्ले से ट्रैफिक लाइट के नियम तोड़ने
वाले प्रबुद्ध लोग समाज के इस नियम को तोड़ने से हिचक रहे हैं कि, पैसे और पावर से
ज्यादा जीवनसाथी की संवेदना उनकी बेटियों को खुश रखेगी।
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