Sunday, October 8, 2017

और भी व्रत हैं ज़माने में....



आप करवा चौथ का व्रत नहीं करेंगी?” बिटिया पांचेक साल की रही होगी जब ये सवाल पूछते वक्त उसकी आंखें आश्चर्य से गोल थीं और अविश्वास से भरीं.
वो स्कूल में अपनी टीचर्स की करवा चौथ को लेकर तैयारियों और बातचीत से उत्साहित इस उम्मीद में घर लौटी थी कि यहां भी वैसा ही कुछ माहौल मिलेगा. जहां तक याद है उसी साल उसकी क्लास टीचर की शादी भी हुई थी. मेरे इंकार ने पहले कुछ क्षणों के हैरत को तुरंत ही अस्वीकार में तब्दील कर दिया. हाथों को हवा में लहराकर वो कई मिनट मुझे समझाती रही कि कैसे ये व्रत हर ममा के लिए कम्पल्सरी है क्योंकि उसकी सभी टीचर्स ये करती हैं.

ओके, पर मैं तो मेहंदी लगवा सकती हूं ना?”  काफी कोशिश के बाद उसने हथियार डाले. तब से ये हर साल का सेलिब्रेशन है हमारे लिए, उसके छोटे-छोटे हाथों की मेहंदी और चेहरे की चमक हमारे लिए इस दिन को बाकियों से अलग बनाती है. बाकी का समय हम दिवाली की तैयारियों में बिताते हैं.



रिश्ते और धर्म निभाने का सारा दारोमदार यूं भी हमारे यहां औरतों पर ही होता है. इस निभान के कर्तव्य बोझ से दबी स्त्रियां पूरे साल किसी ना किसी व्रत की तैयारी और पालन में लगी रहती हैं. चाहे कोई भी सामाजिक पृष्ठभूमि हो व्रतों की इन सूची में एक ना एक पति की उम्र बढाने वाला या अच्छा पति पाने वाला भी ज़रूर होता है. राजस्थान में गणगौर की पूजा होती है, गुजरात में जया पार्वती व्रत तो बिहार और उत्तर प्रदेश में वट सावित्री और हरतालिका तीज का रिवाज़ है. यूं वट सावित्री का व्रत महाराष्ट्र में भी काफी प्रचलित है. इनमें कई व्रत ऐसे भी हैं जिनमें चांद निकलने का इंतज़ार तो दूर चौबीस घंटे तक पानी भी नहीं पीने का रिवाज़ है.

व्रत की कठिनाई का स्तर चाहे जो भी हो, जाने क्यों सारे का सारा ग्लैमर करवा चौथ के हिस्से ही आ गया है. बॉलीवुड की मेहरबानी इस एक त्यौहार के इर्द-गिर्द कुछ इस तरह बरसी है कि बाकी के सारी रीति-रिवाज़ों की चमक ही फीकी पड़ गई. तभी गुजराती पृष्ठभूमि पर बनी हम दिल दे चुके सनम में भी संजय लीला भंसाली ने ऐश्वर्य को सलमान के लिए करवा चौथ का व्रत रखते ही दिखाया है, जया पार्वती का नहीं. एकता कपूर के सीरियलों में रात को भी सजी संवरी नायिकाएं इस दिन और ज़्यादा सज संवर कर पति और चांद के साथ देखती नज़र आ जाती हैं. टीवी सीरियलों की वजह से वैसे भी ये दिन ग्लैमर के सालाना जश्न की शक्ल लेता जा रहा है.

हमने अपने बचपन में व्रतों को अलग नज़र से देखा है. पति-पत्नी के बीच रोमांस का प्रतीक भर नहीं, परिवार के सामूहिक उल्लास के तौर पर. नानी छठ करतीं, अर्ध्य सूर्य देवता को चढ़ता लेकिन उन दिनों में घर में उनका ख्याल भी देवी की तरह ही रखा जाता, उनकी महीन सी आवाज़ पर तीन-चार जोड़ी पैर उस छोटे से कमरे को दौड़ जाते जिसके फर्श पर चटाई बिछाकर वो पूजा के दौरान तीन-चार रोज़ रहा करतीं. दादी जिउतिया का व्रत करतीं, तो मां मुंह अंधेरे उनके लिए चाय बनातीं और अगले दिन होने वाले पारन की तैयारियों में जुट जातीं. हम पूरे समय उनके इर्द-गिर्द बने रहते. सासू मां को हरतालिका तीज करते देखती हूं, चौबीस घंटे के निर्जल उपवास के आखिर में जब उनके पूजा की डाली खोली जाती है तो उसमें पूरे परिवार के लिए कुछ ना कुछ होता है. इस व्रतों में निष्ठा है, सादगी है और उतना ही समर्पण भी. नहीं है तो महंगे गिफ्ट का चलन.

मॉल और बाज़ार का कल्चर आने के पहले व्रतों और त्यौहारों का रिवाज़ रोज़-रोज़ की नीरसता से पीछा छुड़ाकर परिवारिकता और सामाजिकता को बढावा देने का काम करता था. यूं बाज़ार की घुसपैठ से कोई अछूता नहीं लेकिन करवा चौथ पर ये हंगामा कुछ इस कदर बरपता है कि आंखें चुंधिया जाती हैं.

मुझे हर तरह के त्यौहार भाते हैं. मां ने यही सिखाकर बड़ा किया कि छोटा हो या बड़ा, उत्सव का कोई भी मौका छूटने नहीं देना चाहिए. करवा चौथ के दिन भी किसी ना किसी तरह जश्न का हिस्सा बन ही जाती हूं. सालों तक बिल्डिंग की सुहागनें ग्राउंड फ्लोर वाले मेरे घर के सामने दोपहर की पूजा करती रहीं. मैं नियम से उस पूजा के वक्त उनके साथ खड़ी रहती, किसी को पानी तो किसी को स्टूल ला-लाकर देती रही. शाम को होने वाले गेट-टुगेदर में सबको तंबोला खिलवाने की ड्यूटी भी निभाई है क्योंकि शाम तक बस मेरे खाए-पिए गले में ही एक-एक नंबर निकालकर ऊंची आवाज़ में पुकरने की ताकत बची रहती थी.


फिर भी करवा चौथ के हंगामे पर लगता है एक शंहशाह ने बनवाकर हसीं ताजमहल, हम ग़रीबों की मुहब्बत... वाले मिसरे का व्रत के तर्ज़ पर कुछ ना कुछ ज़रूर बना ज़रूर दिया जाना चाहिए. 

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