Saturday, September 9, 2017

अपने दिल के दरवाज़े की खुद ही मालिक हैं गीताश्री की नायिकाएं


अमृता प्रीतम ने अपनी नायिका के दिल के दो दरवाज़े बनाए. सामने का दरवाज़ा उसकी मर्ज़ी से नहीं खुलता और पिछले दरवाज़े का खुलना वो किसी को दिखा नहीं सकती. ना ही पिछले दरवाज़े से आने वाले के लिए सामने का दरवाज़ा खोला जा सकता. पिछला दरवाज़ा खोलने के लिए भी हौलसा चाहिए होता, क्योंकि उस दरवाज़े से जो दिल एक बार चला जाता वो लौटकर कभी छाती में वापस नहीं आता. शायद इसलिए गीताश्री ने अपनी नायिकाओं के दिल में बस एक दरवाज़ा बनाया, उसकी सारी आकांक्षाएं, सारी चाहनाएं सब इस चौखट से नज़र आने दीं. अपनी हसरतों को शब्दों में ढाल कर वो अपने दिल के दरवाज़े को अपनी मनमर्ज़ी से खोलने और बंद करने का हौसला रखती है. गीताश्री की नायिकाओं का दिल हौले से धड़कता नहीं, बड़े हौल से हुलसता है, क्योंकि अपने शरीर और मन की चाहनाओं पर उसने शर्मिंदा होना नहीं सीखा. फिर वो कटोरी भर मलाई खाने की सुरीलिया (मलाई) की हसरत हो या प्रेम में भी अपना स्व बचाकर रखने की सुषमा (सी यू) की ज़िद, पाठक अपने आपको नायिकाओं के इंतिख़ाब के सामने झुकता हुआ पाता है और पन्ने पलटते-पलटते उन्हें अपनी सहमति दे बैठता है.

गीताश्री ने अपनी नायिकाओं को ख़ुद से प्रेम करना सिखाया है. कहानी प्रश्न कुंडली में अपने दरकते दांपत्य को बचाने निकली शिवांगी को जब इस प्रयत्न के खोखलेपन का एहसास होता है तो वो प्रेम और धोखे के दलदल में अपने जिंदगी के बेसुरे संगीत को और झेलने से इंकार कर देती है और अपनी कोशिशों को परे सरका अपने आप में संपूर्णता ढूंढ लेने से भी नहीं हिचकती. सी यू की सुषमा तो बेहिचक कहती है कि प्रेम दरअसल रुहानी कम, जिस्मानी आतंक ज़्यादा है और इसलिए रिश्तों को यातना शिविर में बदलने के पहले ही ख़त्म कर देना बेहतर.  
कहानियों में यदा-कदा गृहस्थी का स्ट्रीट विज़डम भी झलकता है. “पति से टकराकर घर में आप कुछ नहीं हासिल कर सकतीं, या तो उन्हें बस में कर लें या मूर्ख बनाएं,” दरअसल इस देश की ज़्यादातर गृहणियों की रणनीति की मुखबिरी करता है, एक तरफ वो पतियों से दबती हैं तो घरेलू मोर्चे पर पति तो मूर्ख बनाकर अपना काम निकालती रहती हैं. गृहस्थी की चारदीवारी को जीवन भर नापती औरतों के लिए तो पति का प्यार वैसे भी पारा है, ना खुली हथेलियों में बैलेंस होता है ना बंद मुठ्ठी में टिकता है.
बिटवीन द लाइन्स और चिथड़े-चिथड़े शून्य कथाकार के पत्रकारिता की पृष्ठभूमि की छाप लिए हैं. ये कहानियां समाज और सिस्टम के दोगलेपन और विद्रूपता की झलक दिखलाकर सिहरन से भर देती हैं.
संग्रह की सभी कहानियां स्त्री प्रधान होते हुए भी पृष्ठभूमि और कथानक के दृष्टिकोण से व्यापक विविधता लिए हुए हैं. फिर भी अपनी शर्तों पर जीना और अपनी शर्तों पर मुक्त हो पाना इन सब पात्रों का प्रारब्ध है. फिर वो कोन्हारा घाट की माया फुआ का अभिजात्य हो या डाउनलोड होते हैं सपने की सुमित्रा का अभावों से भरा त्रासद जीवन, आखिर में अपने फैसलों की गर्वोन्मुक्तता के साथ सब की सब एक सूत्र में बंध जाती हैं.  सुमित्रा के ढेर सारे सपनों में से एक को डाउनलोड होते देखना मन को सुखद गर्माहट से भर देता है.
जिंदगी ने सवाल चाहे जैसे भी खड़े किए हों, लेखिका अपने पात्रों को कभी उनके सामने सिर नहीं झुकाने देतीं. चाहे जहां से हो, उन सवालों के जवाब ढूंढ लाती हैं. अपनी परिस्थितियों से जूझती ये औरतें जब सारी जिजिविषा बटोर लेती हैं तो मिलकर एक ऐसी दुनिया रच लेती हैं जहां उनपर उंगली उठाते, उन्हें जज करते पुरुषों की ना कोई ज़रूरत जान पड़ती है ना जगह. स्त्री की इच्छाशक्ति, उसकी सम्पूर्णता, उसकी कामनाओं और चाहनाओं के नाम ख़ूबसूरत पैगाम है डाउनलोड होते हैं सपने


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