Monday, February 29, 2016

मौकापरस्ती का कारोबार


ये हर शहर, हर बाज़ार में दिख जाते हैं अपने ठेले के साथ। ठेले की सज-धज हर मौके पर लेकिन बदलती रहती है। होली पर गुलाल और पिचकारियां बेचते हैं, कभी राखियां सजा लेते हैं, फिर जन्माष्टमी में कान्हा के छोटे-छोटे कपड़े मुकुट, बांसुरी वगैरा। दीवाली के दीए, मोमबत्तियां खत्म हुए नहीं कि लाल टोपियों और क्रिसमस ट्री के सितारों से ठेला फिर सज जाता है। इस तरह की दुकानदारी का फायदा ये होता है कि कभी ऑफ सीज़न नहीं आता। लब्बोलुआब ये कि मौकापरस्ती की दुकानें भी ऐसी ही सजती हैं। सीज़नल इमोशन्स से लबरेज़। जब जिसका बाज़ार गर्म हो उसकी दुकान सजा लो। मौकापरस्ती के इन्हीं ठेलों पर आजकल देशभक्ति बिक रही है, धड़ल्ले से। इसका सीज़न भी ऐसा लगता है भैया, लंबा चलेगा। सो उन्माद का तड़का लगाकर दनादन देशभक्ति परोसी जा रही है। इस दुकानदारी की बड़ी समस्या ये कि बेचने वाला भी देशभक्ति का सामान दिखा रहा है और खरीदने वाला देशभक्ति की करेंसी लहरा रहा है।

हाथी के दांत की तरह देशभक्ति भी दो तरह की होती है, खाने की अलग और दिखाने की अलग। जिस तरह हाथी के खाने वाले दांतों से किसी को मतलब नहीं, लूट खसोट दिखाने वाले दांतों के लिए ही मची रहती है, देशभक्ति भी वही कामयाब मानी जाती है जिसे चीख-चिल्ला कर दिखाया जा सके। जिस देशभक्ति के वीभत्स प्रदर्शन ने बीस कोस के दायरे में आपके नाम की दहशत नहीं पैदा की वो देशभक्ति किस काम की भला?    
देशभक्ति के उन्मादियों की मानें तो लोग डॉक्टर, इंजीनियर, पायलट, वकील अपनी क्षमता, रुचियों और मौकों के आधार पर नहीं अपनी देशभक्ति के रिपोर्ट कार्ड के हिसाब से बनते हैं। अपना देश छोड़कर कोई विदेश इसलिए जाना चाहिए क्योंकि उसे दुनियाभर में अपने देश का नाम रोशन करना है इसलिए नहीं कि उसे अपने और अपने परिवार की ख्वाहिशों में रंग भरना है, बेहतर भविष्य की तलाश करनी है। वहां कमा कर वो पैसे घर भेजता रहे ताकि देश के विदेशी मुद्रा कोष में इज़ाफा करे इसलिए नहीं कि उसके परिवार छोटी-बड़ी ख्वाहिशें और ज़रुरतें पूरी हों, ताकि जब वो लौटने का फैसला करे तो उसके लिए सहूलियतें इंतज़ार करें यहां। फिर अपनी सहूलियत के हिसाब से देश वापस लौटने वाला शख्स कौन हुआ, देशभक्ति या देशद्रोही?  
इनके हिसाब से सेना में नौकरी के लिए लालायित जवान अपने लिए अच्छे भविष्य की कामना नहीं करते, अपने परिवार को बेहतर ज़िंदगी, अपने माता-पिता की आंखों में सुख और संतोष भी नहीं देखना चाहते, वो चाहते हैं तो बस हर हाल में देश के लिए शहीद होना। अगर ये सामान्यीकरण सचमुच इतना ही सरल है तो घुसपैठिए और आतंकवादी किसकी चूक और किसके निजी स्वार्थों की पूर्ति का लाभ उठाकर सरहद पार करते हैं?
अरे बाप रे इतना कुछ लिख दिया, देशद्रोह की बंदूक मेरे ऊपर तनने से कोई नहीं रोक सकता अब। लेकिन एक मिनट! मुझपर देशद्रोह का इल्ज़ाम वो इंसान लगाएगा मी लॉर्ड,
1.   जिसने सड़क पर कभी थूका ना हो और सरकारी दीवार पर मूता ना हो।
2.   जिसने अपने जीवन में कभी कोई रेड लाइट ना तोड़ा हो।
3.   जिसने ना कभी घूस दिया हो ना घूस लिया हो।
4.   जिसने ना तो पड़ोसी के घर से और ना ही सड़क से कभी बिजली की चोरी की हो, घर में शादी या जगराता हो तभी भी नहीं।
5.   जिसने परचून की दुकान से भी पक्का बिल बनवाकर खरीदारी की हो।
6.   जिसने टैक्स बचाने के लिए कभी झूठा मेडिकल, एलटीए और किराए का बिल बनाकर दफ्तर में जमा नहीं किया हो।
7.   जिसने देश से बाहर जाने पर कभी ज़ोर से बोलकर, कभी दूसरों की प्राइवेसी में नाक घुसाकर, कभी गंदगी फैलाकर, कभी छोटे-छोटे कानून तोड़कर देश का नाम रोशन करने की दिशा में योगदान ना दिया हो।
लगभग पूरी आबादी को निपटा देने के लिए ये सात ही काफी हैं। इसके बाद भी अगर कोई बचा है तो उसके पास देशभक्ति का सर्टिफिकेट बांटने से बेहतर काम होंगे इसका पूरा विश्वास है।  

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