पीछे समंदर की लहरें अभी भी एक-दूसरे का पीछा
करतीं चूर-चूर हो रही थीं लेकिन अंधेरा होने पर उनकी ओर किसी का ध्यान नहीं था. सारी
रौनक बीच की दूसरी ओर लगी दुकानों और सी फूड से भरे रेस्तरां की कतारों तक सिमट आई
थी. उसकी दुकान रेत के उसी फैलाव पर लगी थी. चटक पीली ज़मीन पर लाल फूलों वाली
उसकी कुर्ती दूर से ही नज़र आ रही थी. नाक का बूंदा बायीं ओर और कानों में लंबी
लटकन वाले चांदी के झुमके. रंग-बिरंगे धागों में अंग्रेज़ी के अक्षरों को पिरोती,
नाम वाले ब्रेस्लेट बनाने में जुटी उसकी उंगलियों में बिजली का स्फुरण था.
“राजस्थान से हूं
मैं, सवाई माधोपुर सुना है आपने?”
उसकी नज़रें बस सेकेंड भर के लिए उठीं और बाकी
का जवाब सधे हाथों की रफ्तार के साथ दिया गया. बीच में जब एक दक्षिण भारतीय नवोढ़ा
मेहंदी लगवाने की गरज से दाम पूछने आई तो जवाब मलयालम में दिया गया.
“अब यहां व्यापार करना है तो इनकी भाषा तो सीखनी
ही होगी”,
उसने
हंसते हुए कैफियत दी और ग्राहक की पसंद की डिज़ायन का ठप्पा उठा लिया. खास दक्षिण
भारतीय तेल से गुंथीं, थक्के की शक्ल की मेहंदी के डब्बे को खोला गया. कलात्मक
स्टांप को उसमें दबा कर हथेली पर एक ठप्पा और बेल के आकार के ठप्पे उंगलियों पर.
दो मिनट का काम और सत्तर रुपए उसकी जेब में. हफ्ता भर रह जाती है ये इंस्टैंट
मेहंदी, उसने उसी अदा से मेरी और बेटी की ओर देखा, फिर कोई जवाब नहीं देख हमारे
बताए ब्रेस्लेट पूरे करने लग गई. अंग्रेज़ी की एक क्लास में नहीं गई लेकिन नामों
के अक्षर पहचान उन्हें पिरोने में मिनट, दो-मिनट से ज़्यादा नहीं लगते. व्यापार
चलाना है तो दो अजनबी भाषाओं को साधना ही होगा, वो भी काम के साथ-साथ, अलग से कोई
कोचिंग, कोई ट्रेनिंग नहीं.
यूं तो दिल्ली में एमजी रोड पर सफेद संगमरमर के
मंदिर बेचने वाली दुकानों की कमी नहीं लेकिन जिस तफ्सील से रहमान भाई मंदिर दिखाते
हैं और जिस सब्र से खरीदार को पसंद आ जाने का इंतज़ार करते हैं वो दुर्लभ है. हाथ
बांधे वो बड़े सब्र से एक-एक मंदिर के सामने खड़े होकर उसकी बारीक़ियां बताते
हैं. पंसद आने पर ग्राहक से उसके पास उपलब्ध जगह की मालूमात करते हैं और फिर बड़े
अदब से बताते हैं कि यूं पैसा देने वाले का है फिर भी बस लेने के लिए इतना बड़ा
मंदिर लेने का मतलब नहीं क्योंकि रखने की जगह कम पड़ जाएगी. आखिर में मंदिर के
रख-रखाव के बारे में हिदायत देते हुए वो पेशगी लेते हैं और तय समय से दस मिनट पहले
ठेले वाला मय मंदिर आपके घर की घंटी बजा देता है. उसे निर्देश है कि ठेले से घर तक
मंदिर पहुंचाने में कोई जल्दबाज़ी ना की जाए और मंदिर को हल्की सी खरोंच भी ना आने
पाए.
अगर दो कामवालियां रखनी हों तो कोशिश करो कि दोनों
अलग धर्मों की हों, ये मंत्र गृहस्थी संभालने के कई साल बाद समझ में आया. दोनों
अपने-अपने त्यौहारों पर छुट्टियां लेंगी और किसी भी दिन आपका घर, अजायबघर बनने से
बच जाएगा. जब से ये रास्ता अपनाया ज़िंदगी में थोड़ी आसानी हो गई. लेकिन ये सोच
दूसरी ओर वाला भी रखता है ये सुनना हैरानी से भरा था. पता तब चला जब एक को उसके
धर्म वाली के घर काम करने भेजने का आग्रह एक सहेली से आया तो उसने कंधे झटका दिए, “आपके जैसा लोग के घर
काम करेगी. नहीं तो वो हमारा त्यौहार पर ही हमको छुट्टी नहीं देगी.” उसने सात सेकेंड
में मन्तव्य साफ कर दिया. प्योर बिज़नेस डिसीज़न.
स्वीट्ज़रलैंड के माउंट टिटलिस पर पारंपरिक पोशाक
में फोटो खिंचाने की दुकान और वहां आने का आग्रह अंग्रेज़ी के अलावा चार और भाषाओं
में लिखा हुआ जिसमें हिंदी भी शामिल. वजह, आने वाले सैलानियों में भारतीयों की
बड़ी तादाद. पांच हज़ार साल पुरानी सभ्यता से इसका कोई नाता रिश्ता नहीं. अंदर
मिलने वाले पिज़्ज़ा में भी इंडियन मसाला पिज्ज़ा का ऑप्शन.
व्यापार की अपनी एक अलग भाषा होती है और अक्सर ये
भाषा बाक़ी की ज़ुबानों से ज़्यादा उदार और पारदर्शी होती है क्योंकि उसके मतलब और
मक़सद में किसी भ्रम की कोई गुंजाइश नहीं रहती.
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