Sunday, August 13, 2017

सजना है मुझे.....



यकीन मानिए इस पंक्ति का अगला हिस्सा यमक अंलकार का अप्रतिम और सबसे लोकप्रिय उदाहरण होने से ज़्यादा और कुछ नहीं. यूं इसे पूरा सच मानकर आत्ममुग्धता के शिखर पर बैठी पुरुषों की कई पीढ़ियां अपनी उम्र की सीढ़ियां चढ़ चढ़कर उतरती गईं. और मानते कैसे नहीं, इंकार करने से उनके लार्जर देन लाइफ ईगो को ठेस नहीं लगती भला? तो ज़माने भर के नगमों और कैफियतों से आपके अहम के गुब्बारा इस कथ्य ने फुला दिया कि भई औरतों के कपड़े, साज-श्रृंगार सब अपने उनको रिझाने के लिए. और इसे दुनिया का पहला और आख़िरी ब्रह्म सत्य मानकर आप चले जा रहे हैं कभी गहनों की शॉपिंग पर, कभी फ्यूशा पिंक ड्रेस की मैचिंग लिपस्टिक की ख़रीदारी पर तो कभी सी ग्रीन साड़ी का फॉल ढूंढने. और कर भी क्या सकते हैं आप, वक्त रहते किसी ने आपको सचेत जो नहीं किया.



जिस दिन औरतें केवल अपने सजनाओं के लिए सजना शुरु कर देंगी ना उस दिन से हज़ारों लाखों करोड़ की ये फैशन इंडस्ट्री अपने लिए ताले ढूंढना शुरु कर देगी. वो क्या है ना कि सौंदर्य विशेषज्ञ या फैशन एक्सपर्ट के लिहाज़ से आपकी उपयोगिता वैसे भी अपने ही घर में शून्य है. मॉव और मैजेंटा का फर्क तो आप बता नहीं सकते, पांच प्रकार के पिंक के नाम रटने में भी बरस गुज़ार देंगे, प्लेटफार्म और पेंसिल हिल का डेफिनिशन भी नहीं पता, एक ड्रेस तीन बार पहनकर सामने से निकल लो तो भी आंखों में पहचान की कौँध नहीं उतरने की. फिर क्यों की जाए आपके लिए इतनी मशक्कत? हेयर स्टाइल में बदलाव बिना-बताए नोटिस तो कर नहीं पाते जुल्फों में खो जाने के जुमले दोहराते हैं.

इकलौती बीवी वाले एक अदद मिडिल क्लास इंसान से पूछिए. अल्सुबह बैग संभाले जब वो दफ्तर के मैराथॉन की तैयारियां कर रहा होता है तो बीवी पसीने से तरबतर, बेतरतीब बालों को क्लचर में दबाए, नाइट गाउन टांगे, टिफिन का डब्बा लिए पीछे-पीछे आ रही होती है. काम निपटाकर वो सलीके से तैयार हुई, बाज़ार गईं, बच्चों को पार्क ले गईं, सहेलियों संग नए फैशन पर चर्चा की. रात ढले बिचारा पति जबतक वापस आता है, श्रीमती जी अपनी सरकारी वर्दी वापस धारण कर चुकी होती हैं. कामकाजी हुई तो सुबह तैयार होकर कुल जमा पन्द्रह सेकेंड आपकी नज़रों के सामने रह कामपर निकल लेंगी और पूरे रास्ते इस बात पर अफसोस करती रहेंगी कि जल्दबाज़ी में एक ही ड्रेस को पन्द्रह दिन में दोबारा पहनने की चूक हो गई, या ब्लू ड्रेस पर कल वाला रेड ईयररिंग ही पहनकर निकल पड़ीं.

औरतें तैयार होकर सबसे पहले ख़ुद को अच्छा लगना चाहती हैं, खुद की तारीफ पाना चाहती हैं, अपने आत्मबल के लिए. इसलिए शीशे में ख़ुद के निहारा करती हैं. बन सकें तो बन जाइए उनका शीशा. आपकी आंखों में स्वीकृति तो उनका हक है, बेतरतीबी में भी. लेकिन तैयार होने के बाद अप्रूवल वो अपनी सहेलियों की आंखों में ढूंढती है, डरती उन रिश्तेदारों से है जो प्योर या मिक्स सिल्क के बीच का अंतर ना बारीक अंतर ना पकड़ लें, या गले की नेकलेस हाथ में तौल, पांच साल पहले किसी शादी में उसके पहने जाने की याद दिला उसकी सारी चमक पर मिट्टी ना डाल दें.

डिज़ाइनर कपड़े पहन अपनी सहेलियों संग इठलाने या नए गहनों की धज में रिश्तेदारों के कलेजे पर छुरियां चलाने के सुख के सामने आपके हर बार के रटे-रटाए बोरियत भरे तुम तो हमेशा ही कहर ढाती होका जुमला पासंग बराबर भी आत्मसंतुष्टि नहीं देता.

वैसे आत्ममुग्धता आपका मुकुट है, जिसे धारण करने के बाद आपको कितने भी समय तक भरमाकर रखा जा सकता है. फिर भी अगर एतराज़ है और गर अपने दावों की परीक्षा ही लेनी हो तो एक बार बीवी से अच्छी तरह तैयार होने का आग्रह करें, और उसकी लेटेस्ट पसंदीदा ख़रीद पहनाकर पूरी शाम केवल अपने सामने बिठाकर रखने को राजी कर के देखिए. या फिर जब मुझे अच्छी लग रही हो तो दूसरों का क्या कहकर उन्हें रिपीट कपड़ों में दोस्तों की पार्टी में जाने को मना लीजिए.

पीढ़ियों से संजोया हुआ आपकी आत्ममुग्धता का मुकुट टूटकर आपके ही चरणों में भरभराकर ना गिर जाए तो कहिएगा. और जब भरम टूट जाए तो निकाल बाहर होईए इस मकड़जाल से. आपका अहम सहलाकर ये फैशन इंडस्ट्री पीढ़ियों से आपकी खून-पसीने की कमाई चूसती रही है और आप हैं कि पौरुष के गुमान में ख़ुद को खाली होता हुआ देखे जा रहे हैं.

स्वीकार लीजिए कि उनका हर कदम आपकी सहमति, आपकी संतुष्टि के परे है. देखिए वो अपने साज-श्रृंगार का ख़र्च भी खुद उठाएंगी और आप लुटने-पिटने से बचते जाएंगे.

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