इन दिनों हम दोनों के बीच चिंता की महीन लकीरें फिर
से हिलोरे ले रही हैं. हर बार की तरह उसकी चिंता स्थूल है, जिसका कोई ना कोई हल
वो निकाल लाएगी. मेरी चिंता हमेशा की तरह सूक्ष्म है जो बेमतलब रह जाएगी. वो
परेशान है ये सोचकर दिवाली बाद जब उसे महीने भर के लिए गांव जाना होगा तो मेरे घर
का काम कौन देखेगा. मेरी परेशानी उसके गांव जाने की वजह है. उसे बेटी की शादी
करानी है जिसमें अब हो रही हर बरस की देरी का उनके लिए मतलब ज़्यादा दहेज़ जुटाना
है.
बड़ी समझदार बेटी है उसकी, मां-बाप से दूर गांव
में रह अकेली पूरे परिवार को संभाल रही है. इस साल बारहवीं के इम्तहान भी दिए थे,
उम्मीद अच्छे नंबरों की थी लेकिन चारेक नंबरों से अंग्रेज़ी में रह गई. उधर
रिज़ल्ट निकले और मारे गम के वो तीन दिन फोन पर भी नहीं आई. ये परेशान कि फोन पर
बात हो तो तसल्ली मिले. पिछले बरस तीन महीने बीमार रही, गर्दन में निकले अल्सर के
कैंसर होने का शक हुआ. ऑपरेशन हुआ, तब जाकर ठीक हुई और परीक्षा में बैठ पाई.
“इतने से रह गई तो क्या हुआ? फिर दे लेगी,” मैं इसे समझाती
रही.
अब इस बरस में शादी का मतलब उसका बारहवीं पास
करने की उम्मीद का हमेशा के अधर में लटके रह जाना है.
“शादी के बाद एक पेपर तो दे लेगी ना?”
“पता नहीं, वो तो कइसा आदमी मिलेगा तो बताएगा”
“फिर क्यों इतनी जल्दी मची है तुम्हें शादी कराने
की? मार्च
में इम्तहान दे लेने दो, फिर कराना”
“आप कुछ नहीं समझते, वहां गांव में लोग बात बनाता
है हमारे लिए”
“तुमको जो कहा था उसको कम्प्यूटर कोर्स करा दो
उसका क्या? फीस के
पैसे मैं दूंगी ना, तुमने वो भी नहीं लिए.”
`
“पास के सेंटर में अच्छा नहीं सिखाते, उसको कोर्स
के लिए बस में दूर जाना पड़ता, उधर के लड़के परेशान करते हैं, उसने नाम लिखाने से
मना कर दिया”
जब कोर्स ही नहीं करना तो फीस के पैसे मुझसे लेकर
रखने का ख्याल इसको दूर-दूर तक भी नहीं आया होगा, इतना इसको पहचानने लगी हूं मैं.
“बेटी को पूछा तुमने वो क्या कहती है शादी के लिए,”
मैने फिर भी उम्मीद
नहीं छोड़ी
“वो क्यों कुछ कहेगी, बेटी बहुत अच्छी है हमारी,
हम जो कहेंगे वही करेगी.” उसकी आवाज़ गर्वोन्नत है
“फिर क्या फायदा उसे पढाकर, अपने फैसले लेने लायक
भी नहीं बनाया तुमने तो उसे”, मैं झुंझला उठती हूं
वो मेरी तरफ वैसी नज़रों से देखती है जिसके लिए
अंग्रेज़ी का Exasperated शब्द सबसे सटीक है, जैसे इससे बेहतर तर्क की
मुझसे उम्मीद भी नहीं की जा सकती.
उसने कटी सब्जियां मेरी तरफ बढ़ाकर बर्तन धोने
शुरु कर दिए हैं
“सुनो, क्या फायदा उसे इतना पढाकर, अगर उसे भी
तुम्हारी तरह बर्तन ही धोने हैं तो तुम्हारे और उसमें क्या अंतर रह गया, दो-तीन
साल और रुक जाओ, बीए कर लेगी तो अच्छी नौकरी मिल जाएगी उसे”, अबकी मेरी आवाज़ में मनुहार है
वो चुप रह जाती है.
मुझे अपनी जीत का क्षणिक आभास हुआ ही था कि उसके
मास्टरस्ट्रोक ने पासा पलट दिया, “वैसे मेरी बहन के बेटे को अभी तक नौकरी नहीं
मिली, पांच साल कॉलेज पढ़ा, कम्पूटर कोर्स भी किया, अब छोटा काम करता नहीं, ऑफिस का
काम मिलता नहीं.”
ये उसका ब्रह्मास्त्र है जिसके आगे मैं हर बार की
तरह ध्वस्त हूं. बहन के बेटे की नौकरी का जुगाड़ अभी तक नहीं किया जा सका है.
“वैसे अभी लड़का मिला नहीं है, नहीं मिलेगा तो
परीक्षा के बाद करेंगे”, मुझे
दिलासा देकर वो पोंछे की बाल्टी लाने निकल जाती है.
मेरा बस चले तो उसके गांव के आस-पास के विवाह
योग्य सारे लड़कों को अगले आठ महीनों के लिए ताले में बंद कर दूं.
अगली सुबह हमारी बातचीत का मुद्दा दूसरा है,
“आपको पता है बकरीद में पूरी कालोनी खाली हो रही
है हमारी. बस दो घर में हमलोग रहेंगे बाकी सब जा रहे हैं गांव”
उसकी कालोनी मतलब ड्राइवरों, कामवाली बाइयों,
प्लबंरों और क्लीनरों के किराए के कमरों की कतार
मेरी ओर से जवाब नहीं पाकर वो खुद बात बढ़ाती है,
“सबने
प्लेन का टिकट कटाया है, एक तरफ का ढाई हज़ार का. तीन दिन नहीं, अब एक दिन में
पहुंच जाएंगे गांव”
“अच्छा? इतने सस्ते में टिकट मिल गई”
“हां और क्या, एक महीना पहले कटाओ तो मिल जाती है”,
“ट्रेन में तो तीन महीना पहले नहीं कटाया तो
तत्काल में कटाना पड़ता है, बिना एसी का भी बारह सौ लगेगा, उपर से दो दिन ज्यादा.
इससे तो प्लेन अच्छा है ना, दो दिन इधर ज़्यादा काम कर लेगें तो पइसा बराबर”
उसका गणित और अर्थशास्त्र हमेशा से ही सुलझा हुआ
रहा है, क्योंकि उसने ये दोनों की बातें किसी क्लासरूम में नहीं सीखीं.
“बेटी का शादी में जाएगा तो हम भी प्लेन से टिकट
कटाएगा”
उसकी आवाज़ भले ही सपाट हो लेकिन मुझे लगा उसकी
पूरी कालोनी मुझे चिढ़ा रही है.
No comments:
Post a Comment