नाम और शक्लें मुझे कम ही याद रहती हैं. इस वजह
से कई बार मुश्किल भी आई, शर्मिंदगी भी उठानी पड़ी लेकिन आदतें कहां आसानी से पीछा
छोड़ती हैं. फिर भी एक नाम कई महीनों से सुबह शाम याद आ ही जाता है. कैप्टन रवीना
ठाकुर, बहुत कोशिश की दुनिया के बाकी नामों की तरह ये भी दिमाग से उतर जाए, लेकिन
पीछा ही छोड़ रहा. नाम है कैप्टन रवीना ठाकुर. कई महीने पहले एक हवाई यात्रा में मुख्य
पायलट के तौर पर अनाउंस किया गया ये नाम जाने कैसे ज़ुबा पर चढ़ गया. ये पहली बार
था जब मेरे जहाज़ को किसी महिला पायलट ने उड़ाया था. तब के बाद की हवाई यात्राओं
में बहुत मन्नतें मांगी कि फिर कोई लड़की चीफ पायलट बनकर आए, इतनी लड़कियां मेरे बैठे
जहाज़ों को उड़ाएं कि उनके नाम याद रखने की ज़रूरत ही महसूस ना हो. लेकिन कमबख्त
एयरलाइन वालों ने कभी ऐसा मौका दिया ही नहीं. बावजूद इसके कि देश के सिविल एविएशन
मंत्री कुछ महीने पहले कह चुके हैं कि भारत में महिला पायलटों की संख्या दुनिया
में सबसे ज़्यादा है. अब जब मंत्री जी ने कहा है तो सच ही होगा, शायद मेरा बैडलक
ही ख़राब है. अगर एयरलाइन पायलटों के नाम पहले साझा कर सकते तो मैं कोशिश कर
उन्हीं जहाज़ों का टिकट कटाती जिनकी पायलट कोई सुश्री हो, ताकि किसी का भी नाम याद
रखने की जहमत ही नहीं उठानी पड़े.
पता है क्यों ज़रूरी है नाम और गिनती भूल जाना? क्योंकि जहां
गिनतियां खत्म होती हैं वहीं से बराबरी शुरु होती है. सफलताओं की लिस्ट जब छोटी
होती है तो नाम याद रहते हैं, वही सफलताएं जब कई सारी हो जाती हैं तो केवल उसकी
लंबाई याद रह जाती है. औरतों की गिनी-चुनी उपलब्धियां उस समाज के शोकेस में सजाई
जाती हैं जो वास्तव में उनकी सफलता दर के लिहाज़ से सबसे पीछे है. बराबरी उस दिन
आएगी जिस दिन आप खिलाड़ी को खिलाड़ी, लेखक को लेखक, पायलट को पायलट और साइंटिस्ट
को साइंटिस्ट कहेंगे. हर अचीवमेंट के आगे महिला लगा देना उनको सांत्वना पुरूस्कार
देने जैसा लगता है.
खासकर जब आप खेलों में मिली सफलता को ‘बेटियों ने नाम ऊंचा
किया’ जैसी
हेडलाइन से नवाज़ते हैं तो मन सचमुच खट्टा हो जाता है. बिल्कुल वैसा ही एहसास होता
है जैसे एक बेहद ख़राब बाथरूम सिंगर ने नलका चलाते ही फिर से अपना इकलौता, बेसुरा
आलाप छेड़ दिया है. आपकी बेटियों का मुकाबला वहां मंगल ग्रह के एलियन्स से नहीं
था, किसी ना किसी की बेटी से ही था. रही बात अंतरराष्ट्रीय खेलों की तो वहां तो
आपके बेटों के प्रदर्शन भी हमेशा खराब ही रहा. अच्छा होता भी तो कैसे, उनके
प्रोफेशनल जूतों और अच्छी खुराक के फंड से तो आपका सरकारी हुक्मरान अपने परिवार को
विदेश यात्रा पर ले जाते हैं.
इतना प्रवचन इसलिए कि इन कॉमनवेल्थ खेलों की
मेडलतालिका ने दिल दिमाग को आज ठंढक पहुंचा दी है. महिला पदक विजेताओं के नाम की
लिस्ट पढ़ना शुरु कीजिए, आप बीच में ही गिनती भूल जाएंगे. ऊपर स्क्रोल करके दोबारा
शुरु कीजिए, थोड़ी देर में आप थक जाएंगे, ऊब जाएंगे. फिर आप खुद से कहेंगे, अच्छा
66 मेडल हैं, 26 गोल्ड मिले हैं, सामान्य ज्ञान के लिए इतना ही काफी है.
मैं खुश हूं कि इस कॉमनवेल्थ खेलों ने लड़कियों के नामों की गिनतियां गिनने से
निजात दिला दी है. मैं चाहती हूं इसी तरह हम लड़कियों की सफलता से जुड़ी तमाम
गिनतियां भूल जाएं, फायटर पायलटों की, वैज्ञानिकों की, कंपनी प्रमुखों की, टैक्सी
ड्राइवरों की....और आखिर में बस एक लिस्ट बचे जो इतनी छोटी, इतनी दुर्लभ हो कि उनके नाम
प्रेत छाया की तरह समाज का पीछा ही ना छोड़ें, लड़कियों के ऊपर हो रहे शारीरिक
अत्याचारों की.
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