Friday, October 21, 2016

ये मुद्दा बेमानी हैं


अमेरिका में चुनाव होने वाले हैं।  होने वाले तो यूपी और पंजाब में भी हैं लेकिन अमेरिका वाला एक तो दिवाली-छठ निपटाते ही पड़ेगा और दूसरा उसमें वो सारे टाइम पास मसाले हैं जिसे हम अपने वाले चुनावों में ढूंढकर मज़ा लेते हैं। जिस तेज़ी से अमेरिका के कोने-कोने से बालाएं सामने आकर डोनाल्ड ट्रंप पर यौन शोषण के आरोप मढ़ रही हैं, ज़्यादातर लोगों के लिए व्हाइट हाउस की दौड़ हिलेरी के पक्ष में खत्म हो चुकी है और उनकी दिलचस्पी केवल विनिंग मार्जिन जानने में बची है।
हिलेरी चुनाव जीत गईं तो खबर क्या बनेगी? औरतों की इज्ज़त नहीं करने वाले ट्रंप को हराकर हिलेरी ने इतिहास रचा, और बन गईं अमेरिका की पहली महिला राष्ट्रपति?

लोकतंत्र, दरअसल, विडम्बनाओं और मजबूरियों का समावेश होता है। जब बड़े मुद्दों का अभाव हो तो छीछालेदर की राजनीति करना चुनाव तंत्र की एक और मजबूरी बन जाती है। पिछले आठ सालों में अमेरिका ना किसी युद्ध में शामिल हुआ है ना आंतकवाद का शिकार हुआ। देश की अर्थव्यवस्था में भी कमोबेश सुधार ही हुआ है। ऐसे में वोट मांगने के लिए एक दूसरे के कदाचार की कब्र खोदने से बेहतर विकल्प नहीं होता। ट्रंप पर आरोप लगाए खड़ी औरतों ने हिलेरी के तरकश में तीर भर दिए हैं।

औरतों को लेकर ट्रंप के सुविचार कोई पहली बार सामने नहीं आए हैं। अरबपति बिज़मैन होने के दिनों से ही ट्रंप वुमनाईज़र होने के अपनी ईमेज को चमकाए हुए हैं। लेकिन उसके बावजूद वो रिपब्लिकन पार्टी के दूसरे दावेदारों को हराकर सीधी रेस में पहुंच गए।

यूं लोकतंत्र को भूलने की बीमारी भी होती है। इसलिए मौके-बेमौके इतिहास के पन्ने पलट लिए जाते हैं। साल 1998 का था, कॉलेज के दिन थे और विदेशी मामलों में हमारा ज्ञान लगभग शून्य था। हमें बस इतना पता था कि बिल क्लिंटन नाम का एक गुडलुकिंग शख्स अमेरिका का राष्ट्रपति है। हिलेरी क्लिंटन हमारे रडार में दूर-दूर तक नहीं थी, लेकिन मॉनिका लेवेन्सकी एकदम से कैंपस की हॉट टॉपिक हो गई। क्लास में, मेस में, कॉमन रूम में, जहां चार सिर जुड़कर फुसफुसा रहे हों समझो क्लिंटन और लेवेन्सकी से जुड़े ज्ञानवर्धक शब्दों को समझने-समझाने का काम चल रहा है। लेवेन्सकी पटना में इतनी ही मशहूर हुई कि उसके नाम से शहर में चाट कॉर्नर भी खुल गया था। पॉलिटिकल साइंस पढ़ रही साथिनों ने बताया कि क्लिंटन को इम्पीच किया जाएगा। हम अपना इकोनॉमिक्स का सिलेबस छोड़ उनसे इम्पीचमेंट का प्रोसेस समझने में लग गए। लेकिन हमारे कॉलेज छोड़ने से पहले ना केवल अमेरिकी सीनेट ने क्लिंटन को बाइज्जत बरी कर दिया था। यही नहीं क्लिंटन सबसे ज़्यादा अप्रूवल रेटिंग के साथ व्हाइट हाउस छोड़ने वाले राष्ट्रपति भी बने। वजह?  राष्ट्रपति पद के आखिरी तीन सालों में क्लिंटन ने अमेरिकी राजकोष को लगातार मुनाफे में रखा। सो, देश, मुनाफा देने और खज़ाना भरने वाले राष्ट्रपति की तमाम ग़लतियां भूल गया।

व्हाइट हाउस के दरवाज़े पर करीब-करीब पहुंच गईं हिलेरी क्लिंटन वही हैं जिन्होंने कभी कई-कई विवाहेतर संबंध रखने वाले पति को ना केवल माफ किया था बल्कि सारा दोष बेटी की उम्र की दूसरी औरत पर मढ़ देने वाली अच्छी पत्नी भी साबित हुई थीं।

वैसे अच्छी पत्नी तो ट्रंप की तीसरी वाली मेलानिया भी बनी हुई हैं जो लड़कों से गलती हो जाती है वाले मुलायम अंदाज़ में अपने पति का पक्ष लेती नज़र आ रही हैं। कभी वो पति के व्यवहार के लिए लोगों से माफी मांगती हैं तो कभी इस बात का रोना रोती हैं कि उनका पति बदल गया है, ये वो शख्स नहीं रहा जिसने 60 साल की उम्र में उनसे ब्याह रचाया था।  

लोकतंत्र की एक बड़ी विडम्बना ये भी है कि यहां चुनाव लड़े अलग मुद्दों पर जाते हैं और जीते अलग मुद्दों पर। 18 साल पहले प्रगतिशील विचारकों के एक पूरे तबके ने हिलेरी पर अपने राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए पति का साथ देने का आरोप भी लगाया था। आरोप में कितनी सच्चाई थी भगवान जाने लेकिन दो साल बाद व्हाइट हाउस छोड़ने से पहले हिलेरी न्यूयार्क राज्य से सिनेटर बन चुकी थीं। उसी दौरान कहीं पढ़ा था कि बिल और हिलेरी की शादी को प्यार ने नहीं, राजनीति के लिए पागलपन की हद तक दोनों के प्यार ने रोक रखा है।

व्हाइट हाउस की दौड़ में हिलेरी क्लिंटन 2008 में ओबामा के विरोध में भी थीं लेकिन उन्होने पहले दिन से ही जनता को ऐसा फॉर ग्रैंटेड लिया कि वोटरों ने पहली महिला राष्ट्रपति की जगह पहले अश्वेत राष्ट्रपति के पक्ष में फैसला सुना डाला। उस समय भी औरतों के एक तबके ने हिलेरी को ‘just another man in a skirt’ का खिताब दे डाला था।

लोकतंत्र में जनता की मजबूरी उपलब्ध विकल्पों में से एक को चुनने की भी होती है। कुर्सी खाली नहीं रहेगी सो कोई एक उसपर बैठेगा ही। हिलेरी की जीत के लिए कई और वजहें ज़िम्मेदार होंगी। उन वजहों की लिस्ट और लंबी है जिनसे ट्रंप का राष्ट्रपति बनना खतरनाक हो सकता है। लेकिन औरतों की इज्ज़त उसमें से एक नहीं है। क्योंकि सुर्खियां बटोरने के बाद भी ये मुद्दा इन दोनों उम्मीदवारों के लिए कोई मायने नहीं रखता।


वैसे एक दुविधा और भी है। मीडिया ने तो शुरू से ही ट्रंप को खारिज कर रखा था। ट्रंप जब प्राइमरी का पहला राउंड हारे थे तो अमेरिकी वोटरों की परिपक्वता की दुहाई देते हुए उनकी उम्मीदवारी का मर्सिया भी पढ़ लिय गया था। लेकिन ट्रंप तमाम भविष्यवाणियों को धता बताकर आगे बढ़ते रहें। ये अटकलें अगर एक आखिरी बार गलत साबित हुईं तो दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र,  स्त्री अस्मिता को लेकर क्या तर्क रखेगा?

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