Sunday, December 16, 2018

टूटती वर्जनाओं के दौर में..



नई नवेली अभिनेत्रियों में सारा अली खान पसंद की सूची में तेज़ी से अपनी जगह बनाती जा रही है. उसकी अभिनय क्षमता हो, इंटरव्यू देने की दक्षता या फिर परिष्कृत हिंदी में किया वार्तालाप, पिछले कुछ महीनों में हर जगह उसने तारीफ़ें बटोरीं हैं. इन्हीं तारीफों के बीच पिछले हफ्ते एक न्यूज़ चैनल को दिया सारा का इंटरव्यू क्लिप नज़र के गुज़रा. अपने बढ़े वज़न के दिनों को याद कर सारा ने बड़ी सहजता से कहा कि उसे पीसीओडी है जिसकी वजह से वज़न बड़ी आसानी से बढ़ जाता है और उसे कम करना उतना ही मुश्किल होता है. क्लिप को रिप्ले कर दोबारा सुना. समझ नहीं आया लड़की से भोलेपन और नएपन में ये चूक हो गई या फिर बड़ी समझदारी से अपनी पीढ़ी की लड़कियों के लिए एक मिसाल क़ायम कर गई ये.

पीसीओडी यानि पॉलीसिस्टिक ओवेरी डिज़ीज़ औरतों से जुड़ी परेशानियों की फेहरिस्त में जुड़ा वो नाम है जो बड़ी तेज़ी से नई पीढ़ी को अपनी चपेट में ले रहा है. हर दस में से एक भारतीय महिला इस रोग से पीड़ित है. पीसीओडी या पीसीओएस एक किस्म का हार्मोनल डिस्बैलेंस है जिसमें अंडाशय के इर्द-गिर्द छोटे-छोटे सिस्ट बन जाते हैं. पीसीओडी का संबंध केवल बेवजह वज़न बढ़ने से ही नहीं है, इसके मरीज़ों के लिए पीरिएड्स के दिन ज़्यादा तकलीफदेह भी होते हैं. मर्ज़ ज़्यादा बढ़ जाए तो डायबीटिज़, एक्ने या इंफर्टीलिटी जैसी दूसरी बीमारियों की वजह भी बनता है. बीमारी फिलहाल लाइलाज़ है और इसमें होने वाली तक़लीफ बेतरह. ज़ाहिर है जिस बीमारी के तार पीरिएड्स या गर्भधारण से जुड़े हों उसके बारे में लड़कियों को नेशनल टेलीविज़न पर यूँ बिंदास अंदाज़ में तो क्या फुसफुसाकर बात करने की बंदिश है. और ये पच्चीस बरस की लड़की अपनी पहली फिल्म के प्रमोशन के दौरान इतनी सहजता से कह गई कि उसे पीसीओडी है जिससे उसका वज़न तेज़ी से बढ़ जाता है और उसे दोगुनी मेहनत लगती है उसे वापस कम करने में. सिने तारिकाओं की सो परफेक्ट और सो पॉलिटिकली करेक्ट दुनिया में उसका अपने नॉट सो परफेक्टशरीर के बारे में सहजता से बात करना सुखद लगा.

पीसीओडी का नाम पहली बार दो बरस पहले सुना जब एक स्टूडेंड ने हिचकते हुए एक पुरुष टीचर से बात करने में मेरी मदद मांगी थी. उसे पीसीओडी था जिसके ब्लड टेस्ट के लिए अपने मासिक चक्र के दूसरे दिन उसे एक क्लास टेस्ट छोड़ हॉस्पीटल जाना था. उस वक़्त तो उसकी समस्या का समाधान कर दिया लेकिन बाद के दिनों में इस मुद्दे पर खुलकर बात करने या नहीं करने को लेकर उससे कई बार लंबी चर्चा की. निष्कर्ष ये कि उसके अगले सेमेस्टर जब उसे कम्यूनिकेशन रिसर्च का प्रोजेक्ट पूरा करना था तो उसने पीसीओडी और उसपर खुलकर नहीं हो रही बातचीत की वजहों की पड़ताल करनी चाही. अगले तीन महीने तक वो कैंपस में पीसीओडी की मरीज़ों की ढूंढती, उनके इंटरव्यू करती रही. इस दौरान जब भी उसे प्रोजेक्ट से जुड़े कुछ सवाल करने होते हम क्लास में सारे छात्र-छात्राओं के बीच खुलकर इसपर बात करते. कम्यूनिकेशन की क्लास में विषय चाहे जो हो, संवाद किसी तरह भी बाधित ना हो, मेरी कक्षाओं में ये संदेश शुरू से साफ रहा है.

बहरहाल, मास कम्यूनिकेशन की दूसरी विधा से जुड़ी लगभग उसी उम्र की एक लड़की ने इस विश्वास को फिर से पुख्ता किया है. एक-एक कर वर्जनाऐं यूँ ही टूटनी चाहिएं. नई पीढ़ी की लड़कियाँ अपने आप को सहजता से स्वीकारना सीख रही हैं. अपनी कमियों और अपनी ख़ूबियों के साथ आत्मविश्वास से अपनी ज़मीन तैयार कर रही हैं.

कई बरस पहले एक ज़बरदस्ती के हितैषी ने सलाह दी थी कि मुझे अपने थॉइराइड होने वाली बात भावी जीवनसाथी से यथासंभव छुपाकर रखनी चाहिए. मैंने दूसरी मुलाक़ात के दूसरे वाक्य में सब बता दिया था. रिश्तेदारों की थोड़ी बात तो माननी ही चाहिए.

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