Saturday, November 19, 2016

देशभक्ति ज़रूरी तो है...




आदरणीय देशभक्तों,
देश की सुरक्षा के लिए सैनिकों की कुर्बानी का एकांगी आलाप हम सबने सुना, कोरस में गाया भी. सीमाओं की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी लेकर सैनिकों ने सच मे हमें ये सकून दिया है कि हम सामाजिक व्यवस्था के तमाम दूसरे काम सुचारू रूप से कर सकें. क्योंकि सैनिकों को सीमा पर अकेले ही जाना होता है अपने बच्चों, पत्नी, मां-बाप को पीछे छोड़. अपने सामान के साथ वो फिक्र की एक पोटली भी ढोता जाता है, अपने परिवार की सुरक्षा की, अपने बच्चों के भविष्य की, मां-बाप के स्वास्थ्य की, पत्नी के ऊपर पड़ी दोहरी ज़िम्मेदारी की.

इन तमाम चिंताओं को भूल अगर वो अपनी ड्यूटी निभा पाता है तो इसलिए भी क्योंकि उसे पता है उसके पीछे एक पूरी सामाजिक व्यवस्था उसके अपनों का ख्याल रखने के लिए तैयार है. 

उसे पता है कि उसके बच्चे हर सुबह स्कूल जाएंगे, जहां उनके भविष्य को संवारना टीचरों की ज़िम्मेदारी है. कई महीनों की ड्यूटी के बाद जब अगली बार जब वो घर आएगा तबतक वो दुनिया के कई नए पहलुओं को देख-समझ चुके होंगे. अपनी आखें गोल कर, छोटे हाथ हवा में लहरा उसे विस्मयकारी कहानियां सुनाएंगे जो उसके पीछे किसी और ने उन्हें सिखाई है, उसकी लंबी अनुपस्थिति में कभी-कभी, थोड़ा-थोड़ा उसकी ख़ाली जगह भरने की कोशिश की है.



वो जानता है कि उसके पीछे परिवार में कोई बीमार पड़ा तो उसकी देखभाल के लिए अस्पताल हैं, डॉक्टर और नर्स हैं. जब वो देश के लिए जाग रहा था तो कोई और उसके बच्चे या वृद्ध पिता के लिए अपनी रातों की नींद भुला चाक-चौबंद खड़ा था.

वो निश्चिंत है कि उसके दूर रहने के बावजूद उसकी तनख्वाह के पैसे सरकार और उसके नुमाइंदे समय से बैंक में जमा करा देंगे और पत्नी उसे निकालकर घर की ज़रूरतों को पूरा कर पाएगी. पैसों के अभाव में उसे एक दिन की भी तकलीफ नहीं होगी.

उसके बच्चों को स्कूल से घर पहुंचाने वाला ड्राइवर, सुबह-सुबह घंटी बजाने वाला दूधवाला, उसके घर के छोटे-बड़े काम निपटा देने वाले सजग पड़ोसी, अनाज उगाने वाला किसान, जिसपर वो अपनों की आवाज़ सुन पाता है उस टेलीफोन कनेक्शन को सुचारु रखने वाला मेकैनिक, कूड़ा उठाकर उसके घर और सड़क को साफ रखने वाला सफाई कर्मचारी, टपकते नलकों को कसने वाला प्लम्बर, उसके शहर की पुलिस, बिटिया और उसकी गुड़िया की एक सी फ्रॉक सिल उसके चेहरे पर मीठी मुस्कान लाने वाला दर्जी सब कहीं ना कहीं उसकी इस आश्वस्ति को मज़बूत करते हैं कि उसके पीछे उसका परिवार सुरक्षित है, खुश है और उनकी ज़रूरतें पूरी हो रही हैं. हर वो इंसान जो सीमा पर गए बिना ईमानदारी से अपना काम काम कर रहा है, अपनी देशभक्ति अपने स्तर पर निभा रहा है.

पूरे देश को सैनिक बना सीमा पर खड़ा कर देने से समाज और सभ्यता की रक्षा भी तो नहीं हो सकती. उसके लिए तमाम दूसरे काम होते रहने भी ज़रूरी हैं. फिर हम तो उस परंपरा के हैं जहां दिन भर मेहनत से अपना काम कर घड़ी भर को उनका नाम लेने वाले किसान को भगवान विष्णु ने आठों पहर नारायण-नारायण जपते रहने वाले नारद से भी बड़ा अपना भक्त माना था. हमारी देशभक्ति हमारे कोरस गाने में नहीं, अपना काम सही वक्त पर पूरी ईमानदारी से करने में है. सैनिकों की आड़ में दुनाली साध लफ्फाजी की गोलियां दागते रहने से किसी समाज का भला नहीं हो सकता. सैनिकों की सच में चिंता है तो समाज को इस लायक बनाइए जिसके भरोसे वो अपने परिजनों को निश्चिंत छोड़ जा सके और जिसके लिए लड़ने में उसे फक्र महसूस हो.


देशभक्ति अनमोल है, उसे इतन सस्ता ना बनाएं कि हर कोई, हर गली-नुक्कड़ के मुहाने पर उसकी दुकान सजाने लग जाए. आदर्श स्थिति तो ये होती कि हर सीमा इस लायक बन जाती जहां सैनिकों की ज़रूरत ही नहीं होती, लेकिन इंसानी नस्ल के रहते शायद ऐसा कभी ना हो पाए. तब तक हम एक ईमानदार कोशिश ही कर लें. 

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