Wednesday, May 11, 2016

क्योंकि माएं सांचों से नहीं निकलतीं


ज़्यादा थकीं हों तो मां मैगी बनाती हैं और चटखारे लेकर खाती हैं। मदर्स डे पर सुबह से बच्चों के फोन का इंतज़ार शुरू कर देती है। नए फैशन के कपड़े देखकर मचल उठती है, काश हमारे ज़माने में भी ये प्रिंट और कट्स मिलते। अभी पहनूं तो कैसा लगेगा?‘
कुछ महीने बाद मिलती है तो डांट लगाती हैं, जिम जाना क्यों छोड़ा, कितनी मोटी हो रही हो।
सास बहू वाले सीरियल मां को सख्त नापसंद है, जब आज तक अपने घर के पचड़े  ना सुलझा पाए तो इनके झगड़े में कौन पड़े।

एक और चीज़ मां को पसंद नहीं, वर्गीकरण, त्यौहारों और मेहमानों का। दरवाज़े पर घंटी बजाने वाला हर इंसान, बॉस हो या प्यून, मां का मेहमान है। खाने में उनकी पसंद मां को याद है और चूल्हा तत्परता से मां के हुकुम की तामील करने को तैयार है।
त्यौहारों के लिए भी मां का यही रूल, भई काम तुम्हारा खुशियां फैलाना है, रोज़मर्रा की बोरियत से एक दिन का आज़ादी देना ताकि हम संजीव कपूर की रेसिपी ट्राई कर सकें और इसी बहाने दोस्तों की दावत कर सकें। त्यौहारों की बीच का फर्क बस दिन के मेन्यू का फर्क है उनके लिए। जब ज़िंदगी इतनी छोटी है  कि हर दिन मिले तो भी उत्सव मनाने के लिए कम है फिर जितिया और क्रिसमस में फर्क करने का झमेला कौन पाले। ईद पर हर साल पुराने शहर के अपने दस साल पुराने ड्राइवर को फोन करती हैं, वही ड्राइवर जो हर दीवाली की सुबह फोन पर मां के हाथ के खाने की याद दोहराता है।
होली हो या पहली अप्रैल, मां के पहले शिकार पापा ही बनते हैं और वैलेंटाइन डे वाले दिन पापा को गार्डन से गुलाब का एक फूल देना भी वो नहीं भूलतीं। 

मां की कहानियां कभी भी हमारे ज़माने की अच्छाईयों..’ से नहीं शुरू होती। हर ज़माने की बुराईयां होती हैं, अच्छाईयां भी। तुम्हारे ज़माने में लड़की होना हमारे ज़माने से ज़्यादा मुश्किल है।
चार बच्चों की मां बनने के बाद मां ने दो विषयों में एमए किया और नानी बनने के बाद पीएचडी में अपना एनरोलमेंट कराया। दो साल से अपनी थीसिस पूरी कर डॉक्टरेट का इंतज़ार कर रही है। काम में बेतरतीबी मां को पसंद नहीं, काम ठीक से ना करो तो अपने बच्चों के सामने भी उनकी डांट सुनने को तैयार रहना पड़ता है, तुर्रा ये कि उनकी मां भी तो यही करती थीं।

मां बीमार रहती है, कभी-कभी बहुत बीमार, लेकिन दर्द फोन पर आ रही उनकी आवाज़ की रौनक में दखल नहीं दे पाता। जिस दिन मां को लगता है दर्द अनुशासन से बाहर हो गया है उस दिन फोन पर ही नहीं आतीं, कहलवा देती हैं काम में व्यस्त हैं। लेकिन मां को करीब से जानने वालों को पता होता है कि उस तकलीफदेह दिन में भी मां को दवा से ज्यादा जल्दी लोगों की हंसी ठीक कर सकती है। मां हंसी की पाइड पाइपर है, किसी को भी हंसा सकती है, डॉक्टर को भी। मां जंगल के बीच भी लोगों की भीड़ इकठ्ठी कर सकती है।   

लूडो में मां को किसी से हारना पसंद नहीं है, अपने बच्चों के बच्चों से भी नहीं। और जब दोनों माएं (मां और सासू मां) साथ हों तो घर शतरंज के खिलाड़ी के सेट सा बन जाता है। लूडो और तंबोला की बाज़ियों की गिनती नहीं रहती। दोनों में से कोई अपनी जगह से हिलना नहीं चाहता। हर दस मिनट में शोर मचता है, किसी को बीच-बचाव के लिए आना पड़ता है। हारने वाला बड़ी तत्परता से बुरा भी मान जाता है, रिश्ते के शिष्टाचार में पड़े बिना।

मां के अंदर एक बच्चा है जो कभी भी बड़ा नहीं होना चाहता। और जब तक मां बड़ी नहीं होती उनके बच्चों की बारी तो आने से रही। 

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