Saturday, December 22, 2018

बायोलॉजी और साइकोलॉजी का फ़र्क




जाने किस संयोग से बीते हफ्ते दो-तीन सहेलियों-सहकर्मियों ने बातचीत में जानना चाहा कि पीरिएड्स की उम्र के आस-पास बेटियों से बातचीत किस आधार पर शुरु की जाए. हम माएँ परवरिश का आधा ककहरा यूँ ही साझा अनुभवों से सीख लिया करती हैं. मेरे लिए ये बात हालाँकि साल भर पुरानी ही है लेकिन पहली शुरुआत के बाबत ठीक-ठाक कुछ याद नहीं आया. मैंने बिटिया को ही पूछा, उसने हँसते हुए याद दिलाया कि पूछने की पहल उसकी ओर से हुई थी. हाँ, और मेरे मुँह से इतना सुनकर कि ये एक बायोलॉजिकल प्रोसेस है, वो छूटते ही ये कहती पिता के पास भाग ली थी कि आपकी बायोलॉजी तो बड़ी वीक थी, पापा बेहतर समझाएँगे. पापा ने बक़ायदा पेपर पर ड्राइंग कर समझा दिया था.

मेरी बायोलॉजी वाकई कमज़ोर रही लेकिन जुड़वां भाई के साथ बड़ी हो रही बिटिया को पीरिएड्स को लेकर सहज करने के लिए माँ को बायोलॉजी से ज़्यादा साइकोलॉजी की समझ चाहिए थी.

हमारी पीढ़ी तक लड़कियों और लड़कों की परवरिश में फर्क की सबसे बड़ी विडम्बना समझाने की ही रही है. हर बात को जबरन समझाने की जितनी अनिवार्यता लड़कियों के लिए रही लड़कों को ख़ुद समझदार हो लेंगे के तर्ज पर उससे उतना ही दूर रखा गया. नामालूम ख़ुद समझ लेने की नौसर्गिक क्रिया लड़कियों के लिए ही इतनी असंभव क्यों प्रतीत होती रही.
बहरहाल, उसके कुछ हफ्ते बाद बच्चों के स्कूल ने एक अवेरनेस वर्कशाप कराया. लड़कों का अलग, लड़कियों का अलग. बेटा ने घर आकर चिहुँकते हुए सबको बताया कि उसे स्कूल में लड़कियों वाले डायपर हाथ में दिए गए. उसके बताने में तथ्य से ज़्यादा कौतूहल था, जवाब से ज़्यादा सवाल. बायोलॉजी का पाठ उसने बहन जितना ही पढ़ा था लेकिन दोनों की समझ में अनुभव का जो अंतर आना था वो अपनी जगह बदस्तूर था. उसे स्कूल में जिन दिनों के दौरान क्लास की लड़कियों से सेंसेटिव रहने की शिक्षा दी गई थी, वो उन दिनों के बारे में और जानने को उत्सुक हो रहा था. लड़कियों का डायपर उसकी जिज्ञासा की फेहरिस्त में नया शामिल नाम था. बहन और भाई के माँ-बाप से छुपाए ढेर सारे राज़ों के बीच ये नई घटना पर्दे की तरह पड़ गई थी.

माँ, बेटे से बात करने के लिए सही शब्दों के वाक्य विन्यास बुनने की प्रक्रिया में थी कि एक दिन शॉर्टकट सूझ गया. दरवाज़ा खोलते वक्त बेटे की नज़र केमिस्ट की दुकान से आए थैले पर थी, माँ ने थैला सीधा उसके हाथ में पकड़ा कर कहा, इसमें बहन के लिए सैनेटरी नैपकिन्स हैं, जाकर उसे दे दो.

बेटा ने चुपचाप काम पूरा किया और उसके बाद इस बारे में कोई सवाल नहीं किया. ना माँ से, ना बहन से.

माँ होना ताज़िंदगी एक ही कक्षा में एक ही पाठ को अलग-अलग तरीक़े से पढ़ने जैसा है. आप रोज़ नए तरीके सीखते हैं, अनुभव की नई गाँठ रोज़ आपके दुपट्टे के छोर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है. कुछ बातों को समझा पाने के लिए शब्दों की बहुलता से ज़्यादा शब्दों की किफ़ायत काम आती है. हमारे बीच तमाम दूसरी बातों की फेहरिस्त इतनी लंबी रहती है कि इस बारे में हमने वाकई लंबी बात नहीं की. यूँ भी महत्वपूर्ण ये नहीं है कि आप समझाते समय शब्दों का चयन किस निपुणता से करते हैं. ज़रूरी ये है कि समझा पाने के बाद आपके शब्द आपके दैनंदिन व्यवहार में परिलक्षित होते हैं कि नहीं.

धूप सेंकते हुए हम दोनों ने बड़े महीनों बाद इस बात पर सच में बात की है, फिर, अब कैसे डिफाइन करोगी तुम पीरिएड्स को?”

इट्स अ बायोलॉजिकल प्रॉसेस, मुझसे नज़रें मिलाती हुई वो ज़ोर से हँसती है.

माँ ख़ुद से संतुष्ट है, इस मामले में साइकोलॉजी के हिस्से की ज़िम्मेदारियाँ बख़ूबी निभ गई हैं, अब उसकी कोई ज़रूरत नहीं बची. 



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