Sunday, November 27, 2016

भले घर की बेटियां कहानी नहीं बनतीं


आप जैसी फेमिनिस्टों से कुछ कहने में भी डर लगता है, पता नहीं किस बात को कहां ले जाकर पटकें, कई परिचितों ने नाटकीयता के अलग-अलग लेवल पर, अलग-अलग अंदाज़ में कह दिया है.

लेकिन मैं तो बिल्कुल भी स्त्रीवादी नहीं. किसी रोज़ ऐसा कोई आंदोलन भी हुआ जब सारी औरतें अपने विद्रोह के स्वर के साथ कतारबद्ध हो जाएं, मैं उस रोज़ भी किचन में कोई नई रेसिपी ट्राई करना ज़्यादा पसंद करूंगी. मैं तो बल्कि खालिस परिवारवादी हूं. हंसते-खेलते परिवारों का बने रहना मेरी नज़र में सबसे ज़्यादा ज़रूरी है. बस पूरे परिवार के हंसने-खेलने की कीमत किसी एक की मुस्कुराहट नहीं होनी चाहिए. मैं ऐसे हर परेशान परिचित को अपनी ओर से आशवस्त कर देना चाहती हूं.

फेमिनिज़्म वैसे भी चंद उन बेबस शब्दों की सूची में शुमार है जिन्होंने पिछले कुछ समय में अपना मतलब पूरी तरह से खो दिया है. अपने तकने का आसमान और अपने भटकने लायक ज़मीन की जद्दोजहद मेरी सांसों की तरह हैं, मेरे होने की सबसे ज़रूरी शर्त. कोई बाहरी ऑक्सीजन मास्क इसकी भरपाई नहीं कर पाएगा.

Saturday, November 19, 2016

देशभक्ति ज़रूरी तो है...




आदरणीय देशभक्तों,
देश की सुरक्षा के लिए सैनिकों की कुर्बानी का एकांगी आलाप हम सबने सुना, कोरस में गाया भी. सीमाओं की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी लेकर सैनिकों ने सच मे हमें ये सकून दिया है कि हम सामाजिक व्यवस्था के तमाम दूसरे काम सुचारू रूप से कर सकें. क्योंकि सैनिकों को सीमा पर अकेले ही जाना होता है अपने बच्चों, पत्नी, मां-बाप को पीछे छोड़. अपने सामान के साथ वो फिक्र की एक पोटली भी ढोता जाता है, अपने परिवार की सुरक्षा की, अपने बच्चों के भविष्य की, मां-बाप के स्वास्थ्य की, पत्नी के ऊपर पड़ी दोहरी ज़िम्मेदारी की.

इन तमाम चिंताओं को भूल अगर वो अपनी ड्यूटी निभा पाता है तो इसलिए भी क्योंकि उसे पता है उसके पीछे एक पूरी सामाजिक व्यवस्था उसके अपनों का ख्याल रखने के लिए तैयार है. 

उसे पता है कि उसके बच्चे हर सुबह स्कूल जाएंगे, जहां उनके भविष्य को संवारना टीचरों की ज़िम्मेदारी है. कई महीनों की ड्यूटी के बाद जब अगली बार जब वो घर आएगा तबतक वो दुनिया के कई नए पहलुओं को देख-समझ चुके होंगे. अपनी आखें गोल कर, छोटे हाथ हवा में लहरा उसे विस्मयकारी कहानियां सुनाएंगे जो उसके पीछे किसी और ने उन्हें सिखाई है, उसकी लंबी अनुपस्थिति में कभी-कभी, थोड़ा-थोड़ा उसकी ख़ाली जगह भरने की कोशिश की है.