Sunday, November 29, 2015

लौटना अपनी जड़ों को



मम्मा क्या हम बेहारी है?’ बच्चों ने स्कूल से आकर पूछा।                                
बेहारी नहीं बिहारी, आप अपने राज्य का नाम भी ठीक से बोल नहीं सकते। मैंने उन्हें डपट दिया। वो रुआंसे हो गए, तो मुझे अपनी ग़लती का एहसास हुआ। मैं उन्हे पास बिठाकर बताने लगी, दरभंगा, उनकी मां का शहर, जहां वो तो क्या उनके पैदा होने के बाद उनकी मां तक नहीं गई। सहरसा, उनके पिता का शहर, जहां हम उन्हें बस एक बार ले गए, दो साल की उम्र में, कुलदेवी के सामने मुंडन की परंपरा निभाने।

Thursday, November 26, 2015

मेरी प्यारी मां


मेरी प्यारी मां,
आज तुम्हारी बहुत याद आ रही है इसलिए जाने कितने सालों बाद तुम्हें खत लिखने बैठ गई। याद है ना मां इसके पहले आखिरी खत मैंने कॉलेज से लिखा था जब फर्स्ट सेमेस्टर की परीक्षा के पहले मेरा दिल बहुत घबरा रहा था और घर का फोन आउट ऑफ आर्डर था। कितने साल बीत गए उस बात को...शायद उन्नीस या बीस। जानती हूं आज भी जब तुम सुनोगी तो हंसोगी। दिन में तीन बार तो फोन पर बात होती है हमारी...बच्चों के होमवर्क से लेकर डिनर के मेन्यू तक हर चीज तो पता होती है तुम्हे मेरे घर की। फिर आज मैं तु्म्हें लिखने क्यों बैठ गई अचानक? फोन क्यूं नहीं किया? तुम्हारा दिन तो वैसे भी तीनों बच्चों के फोन के इंतजार में ही कटता है ना...
पर फोन तो तब करते हैं ना मां जब एक दूसरे से कुछ कहना सुनना हो। जब केवल कहना ही कहना हो तब? मन का बोझ हल्का करने के लिए। और ये सब कोई मां के अलावा और किससे बांट सकता है।

Saturday, November 21, 2015

बुद्धु बक्से (इडियट बॉक्स) और हम


घर में बच्चों के दोस्तों का गेट-टुगेदर था। उनके कमरे में जूस, सैंडविच और कुकीज़ पहुंचाने के क्रम में बातचीत के कुछ शब्द कानों तक तैरते चले आए।
मेरे घर में पांच टीवी और आठ एसी हैं, संयुक्त परिवार में रहने वाली सहेली ने कहा।
मेरे घर में चार एसी और दो टीवी, दूसरी ने कहा।
हमारे घर में दो टीवी क्यों नहीं हो सकते, उम्मीद के मुताबिक उनके जाते ही बिटिया का पहला सवाल था।

Thursday, November 5, 2015

बाबा नागार्जुन और मेरी बहनें


दसवीं के बोर्ड के बाद की छुट्टियों के दौरान थोड़े दिनों के लिए गांव में थी। बाबा नागार्जुन से पहली बार तभी मिलना हुआ। दादाजी के एक चचेरे भाई उनके अच्छे दोस्त थे, उस दिन वो उनसे मिलने पहुंचे। यूं उनका गांव तरौनी हमारे गांव के पास ही था, लेकिन यायावर बैधनाथ मिश्र का ख़ुद अपने गांव जा पाना बहुत कम ही हो पाता था। उस समय तक मैं प्रेमचंद, शरत और शिवानी वगैरा में उलझी थी, सातवीं के कोर्स की किताब में बाबा की सिर्फ एक कविता पढ़ी थी, गुलाबी चूड़ियां
प्राईवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ,
सात साल की बच्ची का पिता भी तो है।