Saturday, February 13, 2016

हिंदी, सिंदूर और साड़ी



वो अमेरिकन मेरे घर में केबल का कनेक्शन लगाने आया था। मैंने पानी को पूछा तो उसने कोक मांग लिया। ख़ैर, कई और बातें हुईं अपने शहर, देश के बारे में तो उसने पूछा,
अमेरिका आए कितना वक्त हो गया तुम्हें?”
एक महीना
बस! लेकिन तुम्हारी इंग्लिश तो बहुत अच्छी है।
मेरी आंखों में आंसू आ गए,  वो क्या है ना कि अपने देश में रहते हुए आजतक मुझसे किसी ने नहीं कहा था कि मेरी अंग्रेज़ी अच्छी है।


अंग्रेज़ी दुनिया के सबसे ताकतवर देश की राष्ट्रभाषा है, सही है। लेकिन ये भाषा वहां लोगों की इज्ज़त और प्रतिष्ठा का सूचकांक नहीं है। आपके ज्ञान, आपकी समझ, आपकी बुद्धिमता को अंग्रेज़ी की डिक्शनरी में आपके दखल से नहीं मापा जाता। कहने को कोई काम की बात हो आपके पास, खासकर वैसी बात जो पैसा बना सके, तो लोग उससे सुनने समझने के लिए समय और धैर्य ज़रूर लगाएंगे। फिर चाहे आपके उच्चारण में कितने ही दोष हों और भाषा कितनी ही टूटी-फूटी हो आपकी। यूं अगर आप अपने काम में अच्छे हैं तो आपसे ज्यादा बातें करने की ज़रूरत वैसे भी किसी को नहीं।
अमेरिकी प्रवास के दौरान, यूरोपीय देशों में घूमने के दौरान कई बार बाज़ार में, अस्पताल में, सड़कों पर, दफ्तर में कई ऐसी स्थितियां बनीं जिसकी वजह से किसी हिन्दुस्तानी को हिकारत की नज़र से देखे जाने की गवाह बनी। लाइन तोड़ धक्का-मुक्की करते वक्त, ऊंची आवाज़ में बातें करते समय, सड़क पर बेवजह हॉर्न बजाते वक्त, रोते-चिल्लाते बच्चों को नहीं संभाल पाते वक्त, किसी की निजता में बेवजह दखलअंदाज़ी करने समय। लेकिन इनमें से कोई भी वजह अंग्रेज़ी जानने ना जानने से ताल्लुक नहीं रखती थी।
हां हिन्दुस्तानी दोस्त ऐसे दिलचस्प किस्से ज़रूर सुनाते थे जब ट्रैफिक नियम तोड़ने पर पुलिस वाले ने रोका तो अंग्रेज़ी नहीं जानने का झूठा बहाना काम आया और बस वॉर्निंग देकर छोड़ दिए गए।
स्विट्जरलैंड, इटली, फ्रांस, बेल्जियम, जर्मनी, चेक गणराज्य, ऑस्ट्रिया जैसे यूरोपीय देशों को आप कुछ घंटों में ट्रेन से पूरा माप सकते हैं, एक देश से दूसरे देश में जाने के लिए अलग वीज़ा भी नहीं चाहिए, करेंसी भी एक ही चलती है लेकिन हर सीमा पार करने पर भाषा ज़रूर नई हो जाती है। फ्रेंच, जर्मन, इटालियन, चेक, डच, नई सीमा में प्रवेश के साथ ही एक ही ट्रेन में सूचना की भाषा तुरंत बदल जाती है, अंग्रेज़ी का स्थान इन भाषाओं की सूची में तीसरे, चौथे नंबर पर आता है। आपके पास सुनने का धैर्य है तो ठीक नहीं तो उनकी बला से। उनके देश आए हैं तो भाषा भी उनकी ही होगी। यूं आसपास सबकुछ इतने सुचारू रूप से चलता है कि किसी भी भाषा में सूचना सुनने की आवश्यकता कम ही पड़ती है।
अजीब सी बात है ना, हमारे देश में काम जानना ना जानना नहीं बल्कि अंग्रेज़ी का ज्ञान हमारी प्रतिष्ठा का सूचक है। इंटरव्यू में अंग्रेजी के एक शब्द का ग़लत उच्चारण आपकी योग्यता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर देता है। बच्चे से अपनी भाषा में बात करती मां के बगल में अगर कोई धाराप्रवाह अंग्रेज़ी बोलने वाली मां आ जाए तो वो सिटपिटा कर ऐसे चुप हो जाती है मानो एक भाषा का ज्ञान नहीं होना उसके मां होने की योग्यता पर सवाल उठा रहा हो। निजी अनुभव ये भी है कि किसी भी सरकारी दफ्तर में अंग्रेज़ी में शिकायत दर्ज करने से महीनो से अटकी पड़ी फाइल को खिसकवाने में मदद मिल जाती है। कुर्सी पर बैठा इंसान ना केवल आपका काम करने में जल्दबाज़ी करेगा बल्कि पंखे में बिठाकर चाय-कॉफी के लिए भी पूछ लेगा। किसी भी प्रोफेशनल कोर्स को बिना अंग्रेज़ी जाने हम पूरा नहीं कर सकते, क्यों? क्योंकि अपनी भाषा में किताबें ही नहीं हैं हमारे पास।
भई अब अंग्रेज़ी मूर्ख ही होगी जो इस देश को छोड़कर कभी जाएगी, अब यहां वो केवल भाषा तो है नहीं, राजमहिषी है, नाकामी को छुपा लेने वाली ओट है, सफलता की शॉर्टकर्ट कुंजी है।

उसके पास मैं बाल कटवाने गई थी, एक नज़र मेरे सिर पर फिराकर उसने बाल काटने से मना कर दिया। मैं नहीं कर सकती, दर्द होगा तुम्हें
मसला समझकर मैं हंस पड़ी, नई-नई शादी के मांग भर सिंदूर को उसने घाव समझ लिया था। मैंने पूरी बात समझाई तो उसने भी हंसी में साथ दिया। फिर पूरी कटिंग के दौरान हम हिन्दुस्तानी शादियों, रीति-रिवाज़ों, महंगी साड़ियों, गहनों, मेहंदी-आलता-चूड़ियों की बातें करते रहे।
अरे वाह, इतने सारे रंग, हिन्दुस्तान में शादी करने के तो मज़े ही कुछ और होते होंगे।  उसने एक बार भी नहीं कहा कि ये सिंदूर, बिंदी, साड़ी वगैरा मेरा पिछड़ापन झलकाता है या मुझे ‘Regressive’ बनाता है। क्योंकि रिश्ते में सम्मान या स्वतंत्रता विचारों से आती है, कपड़ों से नहीं। वो बार-बार मुझसे ये ज़रूर कहती रही कि काश मैेने इतनी सिगरेट नहीं पी होती तो मेरे बाल भी तुम्हारे जैसे सुंदर होते। 

साठ के दशक से वॉशिंगटन में रह रहे एक जाने-माने सर्जन और उनकी पत्नी से बात हो रही थी, तब और अब में उनके जीवन में आए फर्क के बारे में। उन्होंने एक बड़ी दिलचस्प बात बताई, पहले हम यहां की पार्टियों, बॉल्स वगैरा में जाते थे तो अपने कपड़े पहनने में शर्म आती थी, गाउन वगैरा पहनना चाहते थे, अब हिन्दुस्तान को हर कोई जानता है तो हम भी बड़े ठाठ से लेटेस्ट फैशन की साड़ियों में जाते हैं और सबकी नज़र हम पर टिकी होती है।

काश भाषाई कुंठा भी इतनी ही आसानी से हमारा पीछा छोड़ पाती। 

1 comment:

  1. Bilkul sahi... humare desh me English bolne wala padha likha kahlata hai. Humare society me kaafi aisi ladies hai jinko "congratulations" bhi bolne thik se nahi aata. Main ye sochti hu ki wo " badhai ho" hi kyon nahi bol deti, aakhir wo jyada khushi deti hai aur aap apne khushi ko sahi tarah se express bhi kar sakte hai. Aakhir galat English copy se original Hindi hi jyada sahi hoti hai.

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