दरभंगा में बचपन की यादों में सुबह-सुबह
सर पर टोकरी लिए मछली बेचने के लिए निकली मछुआरिनों की आवाज़ भी शुमार है। किसी रोज़
बरामदे पर बैठे दादाजी मम्मी को आवाज़ लगाकर पूछते कि खाने की तैयारी शुरु नहीं
हुई हो तो मछली ले लें और अंदर से हां होते ही घर का माहौल बदल जाया करता। मछली की
सफाई, पीसे जा रहे मसालों की महक और लंच शुरु होने के पहले ही तली हुई मछलियों से
पेट भर लेना, स्मृतियों में ये सबकुछ अभी भी ताज़ा है। थोड़ी बड़ी होने पर हॉस्टल
में मछली के नाम पर बने सर्वनाश डिश ने मन ऐसा फेरा कि शाकाहारी होने का मन बना
लिया। दादाजी ने सुना तो परेशान हो गए, “मैथिल ब्राह्मण की लड़की मछली खाना कैसे छोड़
सकती है।“ ब्राह्मणों
को शाकाहारी होना चाहिए वाला तर्क तब तक पल्ले नहीं पड़ा था जबतक एक दक्षिण भारतीय
टीचर ने मुझे नज़रें टेढ़ी कर तंज़ कसते हुए ‘मांस भक्षी नकली ब्राह्मण’ कहकर नहीे बुलाया था।
Sunday, September 25, 2016
Sunday, September 4, 2016
अपनी-अपनी आज़ादी
अपनी बिल्डिंग में
सिक्योरिटी गार्ड की वर्दी पहने औरतें नज़र आ रही हैं आजकल। जितनी बार गेट से अंदर-बाहर
जाओ सैन्य तत्परता से खड़ी होकर विश करती हैं। शॉपिंग मॉल और दफ्तर की बिल्डिंगों
में तो कई साल से तैनात हैं, हमारे पर्स टटोलतीं, स्कैनर लेकर जांच करतीं।
ओहदा चाहे कोई भी हो वर्दी
पहनकर शान तो आ ही जाती है। चेहरे पर नई शादी की ताज़गी, सुंदर चूड़ियां, मांग भर
सिंदूर, गले में आर्टिफिशियल मंगलसूत्र और माथे पर लाल बिंदी, तिस पर वर्दी की नीली
पतलून में टक्ड इन आसमानी शर्ट और काली बेल्ट। फैशन के तमाम प्रचलित मापदंडों को
चुटकियों में उड़ातीं।
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