Saturday, May 28, 2016

नानी की चिड़ैया



बचपन था, गर्मी की छुट्टियां थीं और उन छुट्टियों के कुछ दिन नानी के घर के लिए मुकर्रर थे। नानी का घर दरअसल एक तिलिस्म था जहां पहुंचते ही सब खो जाते, मांएं अपनी दुनिया में और हम बच्चे अलग अपनी दुनिया में। मां के लिए यहां बस उनकी मां थोड़े ही थीं, आलमारी के कोने में पुराने कपड़ों की तहों में सिमटा उनका बचपन भी था जो उंगलियों के पोरों के छूने भर से वापस हरकत में आ जाता था, कमरों के कोने में वो कहानियां थीं जो ज़रा सी सरगोशी से हुमक पड़तीं और जिन्हें अभी भी याद कर मां और मौसियां घंटों हंसती जा सकती थीं। रसोई में अभी तक कच्ची उम्र में की गई नाकाम कोशिशों की महक तक मौजूद थी। हमारे लिए भी तो वहां रोज़ के बोरिंग काम नहीं थे, बोरिंग सुबह और शाम भी नहीं थे।  

Saturday, May 21, 2016

बेटे सबकुछ तो नहीं कहते...




पहाड़ों में बच्चों के स्कूल की लर्निंग ट्रिप। जाना भी अनिवार्य। पहली बार बिना मां-बाप के, घर से चार दिन के लिए दूर रहना होगा। तुर्रा ये कि इन चार दिनों के दौरान उनसे फोन पर बात भी नहीं कर सकते, बस स्कूल के मैसेज और वेबसाइट पर उनके अपडेट का इंतज़ार करना होगा। जिस दिन से स्कूल का नोटिस आया और वापसी में सहमति की चिट्ठी के साथ चेक भेजा गया, मां की चिंताओं और बच्चों के उत्साह में जैसे चरम पर पहुंचने की होड़ लगी रही।
मां को खुश रखने के लिए बिटिया आश्वासन की प्रतिमूर्ति बनी हुई है।
मैं अच्छे से रहूंगी ममा, टीम के साथ ही रहूंगी, भाई का भी पूरा ख्याल रखूंगी, वो चिढ़ाएगा तो भी नहीं लड़ूंगी उससे।
लेकिन जिस ओर से आशंका ज़्यादा है वहां से आश्वासन का एक शब्द नहीं। बेटा एक ही सवाल के जवाब बदल-बदल कर देता है,
प्रॉमिस करो संभल कर रहोगे, बहन का ख्याल रखोगे।
बिल्कुल नहीं, मैं तो उसे खूब परेशान करूंगा।
ख्याल? मैं तो मैम से कहकर दूसरे ग्रुप में चला जाऊंगा।

Wednesday, May 11, 2016



क्योंकि माएं सांचों से नहीं निकलतीं


ज़्यादा थकीं हों तो मां मैगी बनाती हैं और चटखारे लेकर खाती हैं। मदर्स डे पर सुबह से बच्चों के फोन का इंतज़ार शुरू कर देती है। नए फैशन के कपड़े देखकर मचल उठती है, काश हमारे ज़माने में भी ये प्रिंट और कट्स मिलते। अभी पहनूं तो कैसा लगेगा?‘
कुछ महीने बाद मिलती है तो डांट लगाती हैं, जिम जाना क्यों छोड़ा, कितनी मोटी हो रही हो।
सास बहू वाले सीरियल मां को सख्त नापसंद है, जब आज तक अपने घर के पचड़े  ना सुलझा पाए तो इनके झगड़े में कौन पड़े।