Monday, February 29, 2016

मौकापरस्ती का कारोबार


ये हर शहर, हर बाज़ार में दिख जाते हैं अपने ठेले के साथ। ठेले की सज-धज हर मौके पर लेकिन बदलती रहती है। होली पर गुलाल और पिचकारियां बेचते हैं, कभी राखियां सजा लेते हैं, फिर जन्माष्टमी में कान्हा के छोटे-छोटे कपड़े मुकुट, बांसुरी वगैरा। दीवाली के दीए, मोमबत्तियां खत्म हुए नहीं कि लाल टोपियों और क्रिसमस ट्री के सितारों से ठेला फिर सज जाता है। इस तरह की दुकानदारी का फायदा ये होता है कि कभी ऑफ सीज़न नहीं आता। लब्बोलुआब ये कि मौकापरस्ती की दुकानें भी ऐसी ही सजती हैं। सीज़नल इमोशन्स से लबरेज़। जब जिसका बाज़ार गर्म हो उसकी दुकान सजा लो। मौकापरस्ती के इन्हीं ठेलों पर आजकल देशभक्ति बिक रही है, धड़ल्ले से। इसका सीज़न भी ऐसा लगता है भैया, लंबा चलेगा। सो उन्माद का तड़का लगाकर दनादन देशभक्ति परोसी जा रही है। इस दुकानदारी की बड़ी समस्या ये कि बेचने वाला भी देशभक्ति का सामान दिखा रहा है और खरीदने वाला देशभक्ति की करेंसी लहरा रहा है।

Wednesday, February 24, 2016

क्या ये अंतर नहीं?


पिता बीमार हैं, बेटी को लग रहा है कि उनकी देखभाल ठीक तरह से नहीं हो रही, उन्हें अपने घर लाना चाहती है, लेकिन डरती है, उसके घर अगर कोई ऊंच-नीच हो गई तो भाई क्या कहेंगे। होने को तो कुछ वहां भी हो सकता है लेकिन वो तो उनके घर का मामला होगा ना।

पढ़े-लिखे आधुनिक ख्यालातों वाले परिवार में पली उस लड़की को सपने देखने से किसी ने नहीं रोका। उसे हर वो सुख-सुविधा दी गई जो उसके भाई को मिली, पढ़ने की, खेलने-कूदने की, अपना करियर चुनने की, अपना जीवनसाथी चुनने की। मां-बाप ने ये भी पहले ही जता दिया है कि उनकी संपत्ति का आधा हिस्सा बेटी का होगा। बच्चों को पालने का ये आदर्श तरीका है जिसे पूरे समाज के लिए अनुकरणीय माना जाना चाहिए।

Thursday, February 18, 2016

साहित्य का अर्थशास्त्र


मामूली परिचय के आधार पर उनके यहां पहली बार जाना हुआ था। लिविंग रूम के एक कोने में बेहद कलात्मक से उस शेल्फ पर अंग्रेज़ी की तत्कालीन बेस्ट सेलर किताबें सलीके से रखी थीं। किताबें मुझे त्वरित मुखर बनाती हैं, औपचारिकता की कई सीढ़ियां एक साथ फर्लांग मैं चिहुंकने लगी।
कोईलो की द विनर स्टैंड्स अलोन इतनी डिप्रेसिंग है, मुझे तो कोई खास पसंद नहीं आई। कोईलो की लिखी मेरी पसंदीदा किताब वैसे भी वेरोनिका डिसाइड्स टू डाई है, ऐल्केमिस्ट नहीं।
ख़ालिद हुसैनी की अ थाऊज़ैंड स्प्लेनंडिड सन्स के बाद ये दूसरी किताब थोड़ी रिपीडेट सी है, आपका क्या ख्याल है?”

Saturday, February 13, 2016

हिंदी, सिंदूर और साड़ी



वो अमेरिकन मेरे घर में केबल का कनेक्शन लगाने आया था। मैंने पानी को पूछा तो उसने कोक मांग लिया। ख़ैर, कई और बातें हुईं अपने शहर, देश के बारे में तो उसने पूछा,
अमेरिका आए कितना वक्त हो गया तुम्हें?”
एक महीना
बस! लेकिन तुम्हारी इंग्लिश तो बहुत अच्छी है।
मेरी आंखों में आंसू आ गए,  वो क्या है ना कि अपने देश में रहते हुए आजतक मुझसे किसी ने नहीं कहा था कि मेरी अंग्रेज़ी अच्छी है।

Friday, February 5, 2016

बेटे का बाप


सौ बातों की एक बात ये मुन्ना कि केवल बेटा पैदा करने से बेटे का बाप नहीं बना जाता। बेटे का बाप बनना केवल अवस्था तो है नहीं बचवा, हुनर भी है। जिसे मांजना पड़ता है, घिस-घिस कर, ताकि समय के साथ निखर जाए और वक्त आने पर पूरा काम दे, समझे कि नाही। मिसिर जी के ये बोल केवल बोल नहीं थे, सार था उनके जीवन का। जिस ठसक से वो अपने पांचों नाटे, लंबे, सांवले, तोंदियल, नमूने बेटों को लेकर शहर-बाज़ार निकलते थे कलेजे पर सांप लोटते थे लोगों के। हर शादी की डील उन्होंने जिस सूक्ष्मता से क्रैक की थी और हर शादी के बाद जैसे अपने मकान में एक मंज़िल और बढ़ा ली थी, लिबरलाईज़ेशन के दौर के बाद की बात होती तो यूं पर्दे के पीछे नहीं रह जाता उनका हुनर। 'डाउरी मैनेजमेंट' पर एक सेशन के लिए सादर हॉर्वर्ड बुला लिए जाते मुंबई के डिब्बा वालों के संग।